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छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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रायपुर (श्रीकंचनपथ न्यूज़ डेस्क)। विधानसभा और लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद एआईसीसी की जांच कमेटी कल से अपना काम शुरू करने जा रही है। चुनावी पराजय के बाद लगातार हो रही समीक्षा की मांग पर इस जांच कमेटी का गठन किया था। पूर्व मुख्यमंत्री वीरप्पा मोइली की अगुवाई में बनी फैक्ट फाइडिंग कमेटी शुक्रवार से यह जानने की कोशिश करेगी कि आखिर पराजय के पीछे क्या कारण रहे? मोइली चार दिन के लिए छत्तीसगढ़ दौरे पर आ रहे हैं। लेकिन कांग्रेस के जानकारों का कहना है कि हार के कारण सामने आने के बाद पार्टी नेतृत्व की चिंता बढ़ सकती है, क्योंकि हार के सबसे प्रमुख कारणों में प्रत्याशियों का गलत चयन सबसे ऊपर है। मोइली प्रदेश स्तर पर कई बैठकें करेंगे। इसके अलावा वे रायपुर, बिलासपुर और कांकेर में भी स्थानीय कार्यकर्ताओं से रूबरू होंगे। कांकेर में पार्टी को बहुत कम अंतर से पराजय मिली थी। यहां कई क्षेत्रों की ईवीएम की फिर से गणना होनी है, जिसकी मांग कांग्रेस प्रत्याशी ने निर्वाचन आयोग से की थी। रायपुर की हार कांग्रेस के लिए बड़ा दर्द रही है, क्योंकि यहां पार्टी को सर्वाधिक मतों से पराजय का सामना करना पड़ा। बिलासपुर का सामाजिक समीकरण भी सटीक नहीं बैठ पाया।
एआईसीसी ने छत्तीसगढ़ समेत कई राज्यों में मिली पराजय के बाद अलग-अलग फैक्ट फाइडिंग कमेटियों का गठन किया था। छत्तीसगढ़ के लिए दो सदस्यीय जांच कमेटी में वीरप्पा मोइली और हरीश चौधरी को शामिल किया गया। मोइली कल से चार दिवसीय छत्तीसगढ़ दौरे पर पहुंच रहे हैं। सुबह करीब 12 बजे वे राजधानी रायपुर पहुंचेंगे। प्रदेश के तीन अलग-अलग संभागों में वे बैठकें भी करेंगे। पहले दिन 28 जून को रायपुर में पीसीसी की बैठक लेंगे। जबकि अगले दिन 29 जून को बिलासपुर के कांग्रेस भवन में बैठक होगी। 30 जून को कांकेर के राजीव भवन में बैठक लेंगे। इसके बाद 1 जुलाई को फिर से प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय राजीव भवन, रायपुर में बैठक लेंगे। कांग्रेस को विगत विधानसभा चुनाव में करारी पराजय का सामना करना पड़ा था। 5 साल तक सत्ता में रहने के बाद भी पार्टी को महज 36 सीटें ही मिल पाई। जबकि पार्टी सत्ता में लौटने को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थी। इसके पश्चात हुए लोकसभा चुनाव में भी पार्टी की बुरी गत बनी। उसे 11 में से सिर्फ 1 सीट पर संतोष करना पड़ा, जबकि इससे पहले के लोकसभा चुुनाव में पार्टी को 2 सीटें मिली थी। पार्टी के नेता इस बार के लोकसभा चुनाव में ज्यादा सीटों की उम्मीद कर रहे थे।
लोकसभा चुनाव के बाद कांग्रेस के कई प्रादेशिक नेताओं ने हार की समीक्षा की मांग की थी। प्रदेश स्तर पर तो कोई समीक्षा नहीं हो पाई, लेकिन ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने जरूर फैक्ट फाइडिंग कमेटी का गठन कर दिया। चार दिन तक हार के कारण तलाशने के बाद वीरप्पा मोइली एआईसीसी को अपनी रिपोर्ट देंगे। गौरतलब है कि प्रदेश के कई बड़े नेता हार को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। इसी वजह से पीसीसी के पूर्व चीफ और पूर्व मंत्री धनेन्द्र साहू, पूर्व मंत्री शिवकुमार डहरिया व पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने चुनाव की समीक्षा की वकालत की थी। छत्तीसगढ़ में दोनों चुनाव पीसीसी चीफ दीपक बैज की अगुवाई में हुए थे। यही वजह है कि पराजय के बाद उन्हें पद से हटाए जाने के कयास भी लगाए जाते रहे। एआईसीसी, मोइली की रिपोर्ट के बाद तय करेगी कि छत्तीसगढ़ के नेतृत्व में परिवर्तन करना है अथवा नहीं। लेकिन इससे पहले ही यह चर्चा जोरों पर है कि पार्टी किसी वरिष्ठ और अनुभवी नेता को पीसीसी की कमान सौंप सकती है। पार्टी के आंतरिक सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस छत्तीसगढ़ में कहीं भी कमजोर नहीं थी। ऐसे में समीक्षा के दौरान वरिष्ठ नेताओं की कार्यप्रणाली पर उंगलियां उठने की संभावना ज्यादा है।
एक दिन पहले आएंगे पीसीसी प्रभारी
मोइली के दौरे से एक दिन पहले पीसीसी के प्रभारी सचिन पायलट आज छत्तीसगढ़ दौरे पर आ रहे हैं। रायपुर आने के बाद दोपहर बाद वे अंबिकापुर के लिए रवाना होंगे। पायलट, पूर्व उपमुख्यमंत्री टीएस सिंहदेव की धर्मपत्नी के निधन पर अपनी शोक श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे। शाम को ही वे अंबिकापुर से रायपुर रवाना होंगे और रात में राजधानी रायपुर में विश्राम करेंगे। उल्लेखनीय है कि सिंहदेव की पत्नी इंदिरा सिंह का विगत 15 जून को निधन हो गया था। वे लम्बे समय से कैंसर से पीडि़त थीं। पायलट, फैक्ट फाइडिंग कमेटी के चेयरमेन वीरप्पा मोइली के साथ विभिन्न बैठकों में भी शामिल होंगे। इन बैठकों में प्रदेश के शीर्षस्थ नेताओं के साथ हार के कारणों पर चर्चा होनी है। कहा जा रहा है कि प्रदेश में वर्षांत में होने वाले नगरीय निकाय चुनावों को लेकर भी इन बैठकों में बात हो सकती है। निकाय चुनावों का पूरा दारोमदार स्थानीय कार्यकर्ताओं पर होता है, ऐसे में पार्टी को निचले स्तर पर मजबूत करने पर जोर दिया जा सकता है।
आलाकमान नाराज, किस पर गिरेगी गाज
पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार से पार्टी आलाकमान छत्तीसगढ़ नेतृत्व से नाराज है। आलाकमान को आश्वस्त किया गया था कि विधानसभा चुनाव में पार्टी बड़ी जीत दर्ज करेगी और दोबारा सरकार बनाएगी, लेकिन कांग्रेस के हाथ से राज्य की सत्ता चली गई। इसके बाद लोकसभा चुनाव में भी शीर्ष नेतृत्व को भरोसा दिलाया गया था कि इस बार पार्टी का प्रदर्शन पहले से बेहतर होगा। अपेक्षाओं की अनुरूप परिणाम नहीं आने और प्रादेशिक नेताओं के दावे-वायदे खरे नहीं उतरने से आलाकमान भी चिंतित है। विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी चयन छत्तीसगढ़ के सत्ता और संगठन की अनुशंसा पर हुआ, जबकि लोकसभा चुनाव में प्रदेश के नेताओं से रायशुमारी के बाद प्रत्याशी उतारे गए। लेकिन दोनों ही चुनावों में नतीजे एक समान रहे। प्रमुख रूप से प्रत्याशियों के गलत चयन को हार का प्रमुख कारण बताया गया। खासकर लोकसभा चुनाव में स्थानीय प्रत्याशियों की अनदेखी कर आयातीत प्रत्याशियों को तरजीह दी गई। कई प्रत्याशी दीगर क्षेत्रों से चुनाव नहीं लडऩा चाह रहे थे, लेकिन उन्हें जातीय व सामाजिक समीकरणों का हवाला देकर चुनाव लड़वाया गया। राजनांदगांव से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल, महासमुंद से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू, बिलासपुर से भिलाई क्षेत्र के विधायक देवेन्द्र यादव तो जांजगीर चाम्पा से शिवकुमार डहरिया को स्थानीय कार्यकर्ता स्वीकार नहीं कर पाए। बस्तर सीट पर पूर्व मंत्री व विधायक कवासी लखमा को उतार दिया गया, जो अपने पुत्र के लिए टिकट चाह रहे थे।
दुखी कार्यकर्ता किस पर फोड़ेंगे ठीकरा?
पार्टी की लगातार पराजय के बाद कांग्रेस का आम कार्यकर्ता हताश व निराश है। उन्हें इस बात की तकलीफ ज्यादा है कि हर बार उन पर प्रत्याशी थोप दिए जाते हैं और उन्हें ही जितवाने की जिम्मेदारी भी दी जाती है। इन कार्यकर्ताओं का साफ कहना है कि शीर्षस्थ नेताओं को मतदाताओं का मन पढ़कर प्रत्याशी चयन करना चाहिए। विधानसभा चुनाव में टिकट वितरण को लेकर छत्तीसगढ़ के कई क्षेत्रों में कार्यकर्ताओं की नाराजगी फूटी थी। आरोप लगे थे कि अपने करीबियों को टिकट देने के लिए कार्यकर्ताओं की भावनाओं को नजरअंदाज किया गया। अब ये कार्यकर्ता फैक्ट फाइडिंग कमेटी के समक्ष अपना गुबार निकालने को बेताब हैं। विधानसभा की ही तरह लोकसभा चुनाव में भी कार्यकर्ताओं ने प्रत्याशी चयन पर सवाल उठाए थे। तब भी कार्यकर्ताओं की अनदेखी की गई। इसके अलावा नेताओं व कार्यकताओं में सामंजस्य का अभाव, पूर्ववर्ती सरकार की नीतियों को भी कार्यकर्ता पराजय की वजह बताते रहे हैं।