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Gustakhi Maaf: गनीमत है स्वास्थ्य विभाग में नहीं होते ऐसे तबादले


-दीपक रंजन दास
जिन अफसरों की धड़ाधड़ कार्रवाई के चलते पिछली सरकार की चूलें हिल गईं, अब उन्हीं अफसरों को बदला जा रहा है. एसीबी-ईओडब्लू की पुरानी टीम को पूरी तरह बदल दिया गया है. इन दो विभागों के 32 अधिकारियों की प्रतिनियुक्ति को खत्म कर उन्हें उनके मूल विभाग को लौटा दिया गया है. गनीमत है स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग में इस तरह के तबादले नहीं होते. वरना मेडिसिन वाले सर्जरी में, ईएनटी वाले आर्थो में और गायनिक वाले कार्डियो में पदस्थ हो जाते. स्कूल कालेजों में साइंस वाले आर्ट्स, आर्ट्स वाले गणित और गणित वाले अकाउंट्स पढ़ा रहे होते. विश्वास और अविश्वास का यह खेल किसी भी विभाग की विशेषज्ञता को पलीता लगा सकता है. कहावत है ‘करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान’.. पर यहां किसे पड़ी है. इन विभागों को सुजानों की नहीं बल्कि आस्थावानों की जरूरत है. विधायिका की इन्हीं हरकतों के वजह से कार्यपालिका की कार्यप्रणाली बिगड़ती है. आईएएस और आईपीएस अधिकारी भी आकाओं की मिजाजपुर्सी में लग जाते हैं. उनकी कार्यक्षमता के विकास और योग्यतानुसार नियुक्ति के रास्ते बंद हो जाते हैं. लिहाजा अधिकारी भी अपने काम-काज की बजाय नेताओं की मर्जी को तरजीह देने के लिए विवश हो जाते हैं. दरअसल, सरकारी अमले के दुरुपयोग के ये संस्कार भी हमें ब्रिटिश हुकूमत से विरासत में मिले हैं. ब्रिटिशकालीन भारत में अंग्रेज जब चाहे नियमों को अपने हक में तोड़-मरोड़ लेते थे. यह परिपाटी आज भी जारी है. इसलिए पुलिस हो या प्रशासनिक अधिकारी, किसी के खिलाफ कार्रवाई करने से पहले कानून की किताबें नहीं बल्कि आरोपी के कनेक्शन पर गौर करते हैं. इसलिए कुछ वारंटी जीवन भर वारंटी ही रहते हैं. उनकी कभी गिरफ्तारी नहीं होती. पुलिस उनके साथ बैठकर चाय-नाश्ता करती है पर अदालत में यही बताती है कि वारंटी घर पर नहीं मिला. अधिकारियों को भी पता है कि अदालतें सिर्फ उन्हें खरी-खोटी सुना सकती हैं, ज्यादा कुछ बिगाड़ नहीं सकतीं. अदालतों के कई आदेश, सरकारी दफ्तरों की फाइलों में पड़े धूल फांकते रहते हैं. इसका सीधा असर कानून व्यवस्था पर पड़ता है. अभी यह प्रशासनिक सर्जरी या उठक-पटक चल ही रही है कि एक अवकाशप्राप्त अधिकारी के मामले में बड़ा खुलासा हुआ है. आरोप हैं कि पिछले कुछ सालों में उसने अकूत संपत्ति इकट्ठा कर ली. वैसे जिस गांव में उनकी सबसे ज्यादा संपत्ति और हवेली है, उनके पिता वहां के मालगुजार थे. मछली पालन के तालाब, पोल्ट्री फार्म, इंग्लिश मीडियम स्कूल और अलग-अलग जिलों में उनके परिवार की संपत्ति मिली है. वे स्वयं सरकारी सेवा में उच्च पदस्थ रहे हैं. सरकार किसी की भी हो, उनके कामकाज में कभी कोई बाधा विघ्न नहीं आया. जाहिर है कि वे नौकरी करने के साथ-साथ अपने आकाओं को खुश रखने में सिद्धहस्त थे. गुलाम भारत के उद्यमी गूजरमल मोदी से लेकर स्वतंत्र भारत के अदाणी, अंबानी तक यही वह एक गुण है जो इन सबमें समान रूप से पाया जाता है.