हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
वोट बैंक की राजनीति अकेले कांग्रेस ने नहीं की है। तुष्टिकरण का यह खेल बहुत पेचीदा है। कोई जाति के आधार पर तो कोई धर्म के आधार पर तुष्टिकरण करता है। आजादी के बाद के कुछ वर्षों तक लागू रहने वाली आरक्षण योजना आज तक चल रही है। लोग खुद को अनुसूचित जाति-जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग का घोषित करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा देते हैं। इनके प्रमाणीकरण के लिए जमकर घूसखोरी भी होती है। आलम यह है कि अब केवल दो ही राज्य ऐसे रह गए हैं जहां आरक्षण 50 प्रतिशत से कम है। पांच राज्यों में आरक्षण 80 प्रतिशत या उससे अधिक है तो वहीं अंडमान की पूरी आबादी आरक्षित है। समझ में ही नहीं आता कि किसे किससे आगे बढ़ाने की कोशिश की जा रही है। आरक्षण के इसी मुद्दे पर लंबे समय से सरकारें बनती-बिगड़ती रही हैं। सरकार की अधिकांश योजनाओं का यही हाल है। जब सरकार किसी वर्ग विशेष पर मेहरबान होती है तो उसे छप्पर फाड़ कर देती है। उस वर्ग को इतने लाभ देने की घोषणा कर देती है सभी उसमें शामिल होने की जुगत लगाने लगते हैं। कुछ ऐसा ही मामला है पंजीकृत मजदूरों को दी जाने वाली सुविधाओं का। दरअसल, पेशा मजदूरी का हो या न हो, एक बार इसमें नाम लिखा गया तो बेशुमार योजनाओं का लाभ मिलने लगता है। बीपीएल कार्ड बनने के अलावा पंजीकृत मजदूरों को साइकिल, सिलाई मशीन खरीदने के लिए भारी सब्सिडी दी जाती है। प्रसूति के अलावा गंभीर बीमारी में विशेष सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा उपकरण सहायता, ई-रिक्शा खरीदी, दिव्यांग सहायता योजना तथा मृत्यु पर विशेष अनुदान जैसी सुविधाएं दी जाती हैं। इन्हीं सुविधाओं की वजह से लोगों में मजदूर के रूप में अपना पंजीयन कराने की होड़ मची हुई है। राज्य में फिलहाल 42 लाख 69 हजार 411 पंजीकृत मजदूर हैं। पिछले एक साल में मजदूरों की संख्या में 4।15 लाख का इजाफा हुआ। इसी अवधि में 26 लाख आवेदन रद्द भी किए गए। प्रदेश में 17 लाख 73 हजार 656 असंगठित मजदूर पंजीकृत हैं। इसके साथ ही 24 लाख 95 हजार 755 भवन संन्निर्माण मजदूर हैं। बीते वित्तीय वर्ष में भवन निर्माण केटेगरी में ही 3 लाख 6 हजार 596 नए मजदूर रजिस्टर किए गए। इसके साथ ही एक लाख 9 हजार 35 नए असंगठित श्रमिक भी पंजीकृत किए गए। भवन संन्निर्माण मजदूरों की संख्या का बढऩा तो फिर भी समझ में आता है। देश फिलहाल निर्माण मोड पर है। बस्ती वालों के घर सरकारी सहायता से पक्के हो रहे हैं। हर खाली मैदान पर कालोनी खड़ी हो रही है। आवासीय योजना के तहत हजारों की संख्या में मकान-दुकान-फ्लैट बन रहे हैं। इसलिए ईंट भट्टों और रेत खदानों पर लोगों को काम मिल रहा है। खेती-किसानी, कारखानों और अन्य उद्योगों में मजदूरों का टोटा है। मिडिल क्लास को क्या अगले चुनाव तक इंतजार करना होगा?