हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
मतदान प्रतिशत को बढ़ाने के लिए निर्वाचन आयोग अनेक प्रकार की चेष्टाएं कर रहा है। हालांकि बात शत-प्रतिशत मतदान की हो रही है पर आंकड़ा 75 प्रतिशत को भी पार कर ले तो इसे बड़ी सफलता मानी जाएगी। सरकारी विभागों से लेकर स्कूल, कालेज, अस्पताल सभी जगहों पर शत प्रतिशत मतदान सुनिश्चित करने के लिए विशेष आयोजन किये जा रहे हैं। उंगली पर मतदान की स्याही दिखाने वालों को तरह-तरह के डिस्काउंट देने की घोषणाएं की जा रही हैं। इसके लिए तरह-तरह के आयोजन हो रहे हैं। चिलचिलाती धूप में लोग रैलियां निकाल रहे हैं, पदयात्रा कर रहे हैं, शपथ ले रहे हैं, अपील कर रहे हैं। मॉल से लेकर चौक-चौराहों पर नुक्कड़ नाटक खेल रहे हैं। विद्यार्थी इसमें बढ़चढ़कर हिस्सा भी ले रहे हैं। वैसे भी नाचने-गाने और घूमने का कोई अवसर बच्चे हाथ से जाने नहीं देते। फेस्ट में भागीदारी का तो उनका जुनून ही कुछ और होता है। संभवत: इसी बात को ध्यान में रखते हुए बिलासपुर जिला निर्वाचन आयोग ने सीयू में म्यूजिक फेस्ट का आयोजन किया। इसमें बड़ी संख्या में विद्यार्थी शामिल भी हुए। वैसे तो निर्वाचन आयोग की इस कोशिश के बारे में शेष छत्तीसगढ़ को शायद कुछ पता भी नहीं चलता पर वहां एक गल्र्स होस्टल में बवाल हो गया। यहां की छात्राओं को म्यूजिक फेस्ट में जाने की इजाजत नहीं मिली तो उन्होंने हंगामा खड़ा कर दिया। सुबह तक चला यह विरोध प्रदर्शन समाचार पत्रों की सुर्खियों में आ गया। ये सारी चेष्टाएं सुव्यवस्थित मतदाता शिक्षा एवं निर्वाचक सहभागिता के तहत हो रही हैं। निर्वाचक सहभागिता और मतदान प्रतिशत दो अलग-अलग विषय हैं। निर्वाचक सहभागिता का अर्थ यह है कि लोग राजनीति में दिलचस्पी लें और अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें। फिलहाल तो अधिकांश की राजनीति में कोई रुचि ही नहीं है। हकीकत यह भी है कि जो लोग सड़कों पर शत प्रतिशत मतदान सुनिश्चित कराने के लिए फेरी लगा रहे हैं, उनमें बड़ी संख्या में ऐसे युवा शामिल हैं जिन्होंने अभी मतदाता सूची में अपना नाम ही नहीं लिखवाया है। काश! जैसा अभियान शत-प्रतिशत मतदान के लिए चलाया जा रहा है, वैसा ही कुछ निर्वाचक नामवली में नाम जुड़वाने के लिए भी चलाया जाता। मतदाता सूची में नाम जुड़वाने वालों को भी कोई डिस्काउंट देता। राजनीतिक घटनाओं पर भी क्विज प्रतियोगिता होती। दरअसल, पार्टियां खुद नहीं चाहतीं कि युवाओं में राजनीतिक चेतना जागृत हो। वह मुद्दों पर बहस करे और सही जानकारियां जुटाए। फेसबुक-इंस्टा रील्स और यूट्यूब शाट्र्स के दौर में तो केवल फॉलोअर चाहिए। ऐसा फॉलोअर जो सवाल कम पूछे और नारे ज्यादा लगाए। अभी कुछ ही दिन पहले की बात है कि एक संस्थान के सारे के सारे लोगों ने रातों-रात अपनी राजनीतिक निष्ठा बदल ली। ऐसा तो चंगाई सभाओं में भी नहीं होता। बहरहाल, यह वक्त बहस का नहीं, कुछ करने का है। ग्रीष्म रौद्ररूप दिखा रहा है। इसलिए सुबह-सुबह मतदान कर लें। पहले करें मतदान, फिर दूजा काम।