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Gustakhi Maaf: छत्तीसगढ़ के गौठान बनेंगे अभयारण्य


-दीपक रंजन दास
एक महत्वाकांक्षा के तहत छत्तीसगढ़ की पिछली सरकार ने गौठान योजना शुरू की थी। 11 हजार से अधिक गोठान स्वीकृत किये गये थे जिसमें से छह हजार गोठानों में विभिन्न उद्यमों का दावा भी किया गया था। गोठानों में न केवल लावारिस मवेशियों को रखकर उनकी देखभाल की जानी थी बल्कि उनके गोबर का उपयोग करके विभिन्न उत्पाद भी बनाए जाने थे। सरकार की मंशा इन गोठानों को ग्रामीण औद्योगिक केन्द्र के रूप में विकसित करने की थी। गोबर खाद, गोमूत्र से बनने वाले कीटनाशक, गोबर युक्त मिट्टी से बनाए जाने वाले उत्पाद तो थे ही ग्रामीण स्तर पर उपलब्ध होने वाली अन्य वस्तुओं से जुड़े उद्यम भी यहां संचालित किये जाने थे। इसका परोक्ष लाभ यह होता कि सड़कों पर भटकने वाले आवारा पशुओं की संख्या कम हो जाती। सड़कों पर मवेशियों के कारण होने वाली दुर्घटनाओं में भी कमी आ जाती। पर सरकारी अमले की लापरवाही और ग्राम पंचायतों की उदासीनता के चलते यह योजना खटाई में पड़ गई। उंगलियों पर गिने जा सकने वाले कुछ ही गोठान अब तक क्रियाशील थे। सरकार बदलने के बाद बनी अनिश्चय की स्थिति ने रही सही कसर भी पूरी कर दी। इस तरह राष्ट्रीय स्तर पर बहुप्रशंसित यह योजना ठंडे बस्ते में चली गई। पर अब छत्तीसगढ़ की साय सरकार ने इस योजना में नए सिरे से प्राण फूंकने के प्रयास शुरू कर दिये हैं। उन्हें पता है कि यह एक अत्यंत प्रभावकारी योजना थी जो भ्रष्टाचार और अकर्मण्यता की भेंट चढ़ गई। कुछ परिवर्तनों के साथ यह योजना अब पुन: परवान चढऩे जा रही है। सरकार इन गोठानों को गौवंश अभयारण्य के रूप में विकसित करने जा रही है। अभयराण्य अभय और अरण्य से मिलकर बना है। यानी एक ऐसा वन जिसमें रहने वाले प्राणी निर्भीक होकर रह सकते हैं। अभयारण्यों को केंद्र की गोवर्धन योजना की तर्ज पर संचालित किया जाएगा। केंद्रीय पंचायत मंत्री गिरिराज सिंह ने जनवरी 2024 में छत्तीसगढ़ प्रवास के दौरान ही इसके संकेत दे दिये थे। उन्होंने गोठानों को लोगों के उत्थान का जरिया बनाने, चारे-पानी की पर्याप्त व्यवस्था करने को कहा था। आवारा मवेशियों की मॉनिटरिंग के लिए भी सेल गठित करने के निर्देश दिये थे। दरअसल, गोठानों को केवल बूढ़ी और बीमार गायों के अंतिम आश्रय के रूप में ही देखा जाता रहा है। यही कारण है कि इनके संचालन को लेकर कभी कोई गंभीर नहीं हुआ। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही के शासनकाल में गोठानों में गायों की भूख-प्यास और बीमारियों से समूह में मौतें होती रहीं। कुछ दिनों तक हंगामा रहा और फिर सब कुछ शांत हो गया। भूपेश बघेल की पिछली सरकार ने पहली बार गोठानों को नया स्वरूप देने की कोशिश की और अब साय सरकार उसे बेहतर बनाने की कोशिश कर रही है। अब यह पंचायतों की जिम्मेदारी है कि वो इस योजना को गंभीरता से लें। उनके सहयोग और सक्रिय भागीदारी के बिना यह संभव नहीं है।