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Gustakhi Maaf: विष्णुदेव सरकार की प्राथमिकता में मानसिक स्वास्थ्य


-दीपक रंजन दास
किसी भी राष्ट्र का सम्पूर्ण विकास तभी संभव है जब वहां की आबादी न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक स्तर पर भी स्वस्थ हो. इस कसौटी पर छत्तीसगढ़ की स्थिति विचित्र है. 2019 में कराए गए एक सर्वेक्षण के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में 18 साल से ऊपर की आयु वालों की लगभग 2 करोड़ की आबादी में से तकरीबन 22 फीसदी लोग मानसिक व्याधियों से पीडि़त हैं. इनमें तनाव, अवसाद, मतिभ्रम, मेनिया, दुष्चिंता, अनिद्रा, डिमेंशिया, मादक पदार्थों के सेवन से होने वाली मानसिक समस्याएं आदि शामिल हैं. समस्या यह भी है कि मानसिक रोगियों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. राष्ट्रीय मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को 2019 में लागू किया गया था. इसके तहत प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से लेकर जिला अस्पतालों तक में मानसिक बीमारियों के इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जानी थी. 2100 चिकित्सा अधिकारियों को इसके लिए विशेष प्रशिक्षण दिया गया था. बेंगलुरु स्थित निम्हांस (नेशनल इंस्टिट्यूट आफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंस) में इन्हें प्रशिक्षित किया गया था. योजना के अंतर्गत रोगियों को चिन्हित कर उनकी काउंसिलिंग की जानी थी. साथ ही दवाइयां भी नि:शुल्क दी जानी थी. उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक जून 2022 तक राज्य में लगभग साढ़े तीन लाख मानसिक रोगियों की काउंसिलिंग की गई पर इन्हें नि:शुल्क दवा उपलब्ध कराना संभव नहीं हुआ. मानसिक स्वास्थ्य का सीधा संबंध क्राइम रेट, परिवारों की सुरक्षा और स्थिरता तथा राज्य की उत्पादकता से है. समस्या यह भी है कि मानसिक समस्याओं से जूझ रहे अधिकांश लोगों को पता ही नहीं है कि उन्हें मदद की जरूरत है. किसी ने बता भी दिया तो वो मानने को तैयार नहीं होते. इधर, स्कूल कालेजों में काउंसिलर नियुक्त करने के सरकारी फरमान का भी कोई खास असर देखने को नहीं मिला है. विद्यार्थियों को मारने-पीटने पर भले ही पाबंदी लगी हो पर उन्हें प्रताडि़त करने पर कोई रोकटोक नहीं है. मानसिक तनाव तथा अवसाद से गुजर रहे युवा कब क्या कर जाएं, कुछ कहा नहीं जा सकता. इधर सड़कों पर बदहवास विचरने वालों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है. ऐसे लोग अपना पता-ठिकाना तो दूर अपना नाम तक नहीं बता पाते. सुबह घर से निकलते हैं और फिर लौट कर नहीं आते. भिलाई के फील परमार्थम, सेक्टर-2 और 8 स्थित आस्था वृद्धाश्रम, जुनवानी के रामशीला की कुटिया में ऐसे बहुत से लोग मिल जाएंगे. विष्णुदेव सरकार ने इस क्षेत्र को अपनी प्राथमिकता में शामिल करने का बहुप्रतीक्षित कदम उठाया है. स्वास्थ्य विभाग की पहली ही बैठक में उन्होंने स्पष्ट कर दिया है कि मानसिक समस्याओं की चिकित्सा में लापरवाही बर्दाश्त नहीं की जाएगी. सरकारी अस्पतालों तथा धनवंतरी औषधि केन्द्रों में इसकी जेनेरिक दवाइयों की उपलब्धता सुनिश्चित होनी चाहिए ताकि लोगों को महंगी दवाइयों के कारण चिकित्सा बीच में न छोडऩी पड़े. इसके साथ ही व्यापक जागरूकता अभियान की भी जरूरत होगी ताकि रोगी इलाज के लिए अस्पताल पहुंचें. इसका सकारात्मक लाभ पूरे समाज को मिलेगा.