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Gustakhi Maaf: चार धाम सत्रह दिन और मोक्ष की प्राप्ति


-दीपक रंजन दास
धाम का शाब्दिक अर्थ निवास से है. हिन्दू धर्म में चार धाम की अवधारणा प्राचीन काल से है. इनका उल्लेख वेदों और पुराणों में मिलता है. मान्यता है कि जो व्यक्ति चार धाम की यात्रा करता है, उसे जीवन चक्र से मुक्ति मिल जाती है. चार धाम की यात्रा दो तरह से पूरी की जा सकती है. गंगा स्नान के साथ शुरू होने वाली चार धाम यात्रा का एक प्रारूप बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और यमुनोत्री की यात्रा के साथ पूरा होता है. दूसरा प्रारूप बद्रीनाथ, जगन्नाथ, रामेश्वरम और द्वारका धाम की यात्रा का है. दूसरा प्रारूप ज्यादा महत्वपूर्ण है. इसीलिए इसे बड़ा चार धाम यात्रा भी कहा जाता है. बद्रीनाथ धाम को सृष्टि का आठवां वैकुंठ भी कहा जाता है. यहां भगवान श्रीविष्णु छह महीने विश्राम करते हैं. केदारनाथ धाम शिव का स्थल है. केदारनाथ में दो पर्वत हैं, जिन्हें नर और नारायण कहा जाता है. मान्यता है कि बद्रीनाथ का दर्शन लाभ करने पर व्यक्ति दोबारा गर्भ में जाने से बच जाता है. शिव पुराण के अनुसार केदारनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा कर जल ग्रहण करने से दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता. इस यात्रा के और भी आशय हैं. देश की चार दिशाओं में स्थित ये चार धाम, तीर्थ यात्री को लगभग पूरे देश का दर्शन करा देता है. वह परिव्राजक तो नहीं होता पर देश की भौगोलिक, सांस्कृतिक और भाषायी विविधता से उसका परिचय हो जाता है. चार धाम की यात्रा करने से आत्मज्ञान में वृद्धि होती है. अधिकांश लोग बुढ़ापे में तीर्थ यात्रा करते हैं, लेकिन जो लोग जवानी में ही इस तीर्थ यात्रा को पूरा कर लेते हैं, उन्हें परम ज्ञान की प्राप्ति हो जाती है. प्राचीन काल में तीर्थ यात्रा पैदल करनी पड़ती थी जिससे शरीर का ऊर्जा स्तर बढ़ता था और आयु में वृद्धि होती थी. पैदल चलने के कारण रास्ते भर में पड़ने वाले गांवों, कस्बों में ठहरना होता था. वहां के स्थानीय निवासियों के साथ चर्चा होती थी और राष्ट्र दर्शन होता था. पर अब यह बात नहीं रही. अब यात्रा एक बिन्दु से दूसरे बिन्दु की की जाती है जिसके रास्ते में कुछ नहीं आता. वह उड़-उड़ कर चार धाम की यात्रा कर लेते हैं. भारतीय रेलवे 17 दिन, 16 रातों का पैकेज देता है. यात्रा धाम से धाम की होती है. एक मजे की बात यह भी है कि अब जो जहां चाहे धाम की घोषणा कर देता है. ईश्वर के अनेक नाम हैं. किसी भी एक नाम को पकड़ लो और धाम स्थापित कर लो. वहां के पीठाधीश्वर बन जाओ और फिर हिन्दुत्व से लेकर भारतीय जीवन दर्शन का अपना फलसफा झाड़ दो. चार बाबाओं से पुराण की कथा सुन लो तो दिमाग की हालत ठीक वैसी ही हो जाती है जैसा यूपीएससी या नीट की परीक्षा दिलाने वाले अधिकांश बच्चों की होती है. पढ़ा सबकुछ पर याद कुछ नहीं. उत्तर लिखते हुए हाथ कांपने लगते हैं.