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Gustakhi Maaf: अब स्पीड डेटिंग पर बवाल


-दीपक रंजन दास
“रफ्ता रफ्ता देखो आंख मेरी लड़ी है…” जैसे गीतों का अब जमाना नहीं रहा. ऐसा प्यार पास-पड़ोस में और स्कूल कालेज में ही होता था. लोग सालों तक एक दूसरे के साथ रहते थे. उनमें बातें होती थीं, जान पहचान होती थी, गहरी दोस्ती भी होती थी. यही आगे चलकर प्यार में तब्दील होता था. फिर दोनों की शादी घरवाले जात-बिरादरी देखकर करवा देते थे और अधूरा प्यार कविताओं-गजलों को जन्म देता था. आज करियरिस्ट युवाओं की जिन्दगी तांगे के घोड़े या कोल्हू के बैल जैसी होती है. 12वीं तक, यहां तक कि उसके बाद भी ऐसे बच्चे केवल किताबी कीड़ा ही बने रहते हैं. 25-26 की उम्र में यह अहसास होता है कि अरे! इश्क का सफा तो कोरा छूट गया. ऐसे लोगों के लिए तमाम डेटिंग साइट्स और ठीये-ठिकाने महानगरों से लेकर शहरों तक में पनपने लगे हैं. गुलाबी ठंड के अंतिम बचे-खुचे दिन शेष रह गए हैं. आज से वैलेंटाइन सप्ताह शुरू हो रहा है. ऐसे में छत्तीसगढ़ की राजधानी के एक कैफे ने एक महत्वपूर्ण आयोजन रखा. यह एक डेटिंग ईवेंट था. नाम था स्पीड डेटिंग – अर्थात तमाम सिंगल छूट गए अधेड़ युवा पैसे खर्च कर ईवेंट में शामिल होते. यहां उन्हें अपनी ही तरह के सिंगल मिलते. नए लोगों से पहचान का मौका मिलता. दोनों को ही इस मुलाकात का उद्देश्य पता होता. पिछले कुछ दशकों से विभिन्न समाजों द्वारा भी इस तरह के आयोजन किये जा रहे हैं. इन्हें वर-वधु परिचय सम्मेलन कहा जाता है. यहां एक मंच बना होता है जिसपर भावी वर और वधु अकेले खड़े होकर अपना परिचय देते हैं. अपनी पसंद और नापसंद बताने के साथ ही भावी जीवन साथी में अपेक्षित गुणों के बारे में भी बताते हैं. यह एक बेहद फार्मल आयोजन होता है. स्पीड डेटिंग थोड़ा सा इन्फार्मल है. यहां आप मिल सकते हो, हाथ मिला सकते हो, झप्पी भी दे सकते हो. यह भी एक तरह का परिचय सम्मेलन ही है बस फर्क यही है कि यहां किसी एक समाज के लोग नहीं होते. यहां परिचय का उद्देश्य दोस्ती करना और उसे आगे बढ़ाना होता है. सीधे-सीधे कमिटमेंट या शादी की बात नहीं होती. पर आयोजन परवान चढ़ता इससे पहली ही बजरंगियों की त्यौरियां चढ़ गईं. उन्हें यह आयोजन फूहड़ लगा. फूहड़ता देखने वालों की नजर में होती है. युवक युवतियों के बीच जान पहचान बढ़ाने और एक दूसरे को बेहतर ढंग से समझने के लिए छत्तीसगढ़ के बस्तर में घोटुल प्रथा रही है. बहरहाल, जो लोग इस आयोजन में शामिल होना चाहते थे, वो अब मन मसोस कर रह गए हैं. किताबों में सिर दिए कब 25 के हो गए, पता ही नहीं चला. इसमें वो बच्चे भी शामिल थे जिन्होंने कालेजों में नाम तो लिखाया पर कभी उपस्थित नहीं हुए. हम उम्र लोगों से मिलने का यह मौका भी उन्होंने गंवा दिया. अब जबकि एक मौका मिला था, उसे भी बजरंगियों ने छीन लिया.