हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
भारतीय समाज के एक तबके में ऐसा आम होता है. बीवी किसी और के साथ भाग जाती है और फिर छह-आठ महिने की तफरीह के बाद लौट आती है. पता नहीं वह कोई आश्वासन देती है या नहीं, कोई कसम खाती है या नहीं पर परिवार फिर से एकजुट हो जाता है और गृहस्थी की गाड़ी चलती रहती है. पति अब पहले से कहीं ज्यादा सतर्क रहता है. वह बात-बात पर झल्लाता नहीं. चिढ़ता-कुढ़ता भी मन ही मन है. कोई बात पसंद नहीं आई या क्रोध आ गया तो जोर से हंस देता है. परिवार की सुरक्षा से दूर गई बीवी को भी आटे दाल का भाव पता लग जाता है. उसे यह भी समझ में आ जाता है कि गृहस्थी की जिम्मेदारी अकेले पुरुष की नहीं होती. कमाऊ अकेला पुरुष हो या स्त्री, जब तक गृहस्थी साझा रहती है, तभी तक वह स्वस्थ रहती है. एक सिर्फ मांग करे और दूसरा उसकी आपूर्ति की कोशिश करता-करता गल कर समाप्त हो जाए, तो ऐसी गृहस्थियों का टूट जाना ही बेहतर होता है. पर भारतीय समाज इसे स्वीकार नहीं करता. यहां डोली आती है तो अर्थी ही निकलती है. अब जबकि भारत में सनातन की बातें जोर पकड़ने लगी हैं तो इस परम्परा को भी पुनर्जीवित करने के प्रयास शुरू हो गये हैं. ताजा मामला नीतिश कुमार का है. माना कि 1995 से ही उनका गठबंधन एनडीए से रहा है पर एक महत्वाकांक्षी नेता के रूप में उनकी पहचान किसी से छिपी हुई नहीं है. पिछले पांच-सात महीनों से वो एनडीए में लौटने की कोशिश कर रहे थे. भाजपा के पैंतरे भी जग-जाहिर हैं. यदि दुश्मन स्वयं हथियार डालने का इच्छुक हो तो मरे को मारने में श्रम और ऊर्जा नष्ट करने की जहमत वह नहीं उठाती. महीनों की चर्चा के बाद अब नीतिश कुमार फाइनली एनडीए का हिस्सा बनने जा रहे हैं. उन्होंने बाकायदा वचन दिया है कि अब वो इधर-उधर मुंह नहीं मारेंगे और परिवार के सम्मान को ही अपना सम्मान मानेंगे. 2014 के बाद से ही धुर विरोधियों और आलोचकों का यूं भाजपा प्रवेश चल रहा है. ऐसा भी नहीं है कि ऐसे लोगों को भाजपा ने स्वीकार तो कर लिया हो पर उन्हें आले में रखकर भूल गई हो. यदि व्यक्ति काबिल हुआ तो उसे उसी सम्मान के साथ पार्टी ने स्वीकार किया है और उसे उसकी काबीलियत के अनुरूप दायित्व भी सौंपा है. इनमें से अधिकांश ने इन नए दायित्वों का भरपूर निर्वहन भी किया है. यही एक बात भाजपा से सीखने की है. ईसा से लेकर गांधी तक दुश्मन को माफ करने में यकीन करते थे. भाजपा इससे एक कदम आगे है. वह दुश्मन को माफ करने के साथ-साथ उसे हमराह बना लेती है. वह एक और एक ग्यारह के सिद्धांत में यकीन करती है. इस तरह काबिल नेताओं की चिल्हर पार्टियों को खत्म कर दो दलीय व्यवस्था स्थापित की जा सकती है.