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Gustakhi Maaf: मंदिर से गरूड़ की पांचवी बार चोरी


-दीपक रंजन दास
बिलासपुर जिले के मस्तूरी तहसील के ईटवा पाली में एक प्राचीन मंदिर है जहां अनेक प्राचीन कलाकृतियां बिखरी हुई हैं. इस मंदिर में काले ग्रेनाइट से बनी एक गरूड़ प्रतिमा भी है. इसका निर्माण 7वीं से 10वीं शताब्दी की बीच हुआ था. इस प्रतिमा की अंतरराष्ट्रीय चोर बाजार में कीमत करोड़ों में है. इसलिए बार-बार इसकी चोरी की कोशिशें की जाती हैं. पहले इसे उखाड़ा जाता था पर जब से इसे ठोस बुनियाद पर स्थापित किया गया है इसे तोड़कर ले जाने की कोशिशें की जाती हैं. हाल ही में पांचवी बार इस गरूड़ प्रतिमा की चोरी हो गई. लगभग तीन फीट ऊंची और 65 किलोग्राम भारी यह मूर्ति पहली बार 2004 में चोरी चली गई. पर पुलिस की मुस्तैदी से मूर्ति जिले से बाहर नहीं जा पाई और उसे वापस मंदिर में लाकर स्थापित कर दिया गया. दो साल बाद 2006 में इसकी दोबारा चोरी हो गई. पर चोर इसे लेकर ज्यादा दूर नहीं जा पाए और गांव के बाहर ही छोड़कर चले गए. शायद वो किसी वाहन का इंतजाम करने गए थे कि मूर्ति बरामद हो गई. इसके बाद 2007 में एक कोशिश और हुई पर मूर्ति तस्कर एक बार फिर मात खा गए. इसके 15 साल बाद चौथी बार 2022 में इस मूर्ति को चुराने की कोशिश की गई. मजबूती से जमा दी गई मूर्ति को उखाड़ना इस बार संभव नहीं हुआ. इसलिए तस्करों ने उसे चार टुकड़ों में ले जाने की कोशिश की. पर एक बार फिर वे असफल रहे. पुलिस ने मूर्ति के सभी टुकड़े बरामद कर लिये, जिसे बाद में जोड़ कर फिर स्थापित कर दिया गया. अब एक बार फिर ये मूर्ति लापता हो गई है. मान्यता है कि इस मूर्ति को जिले से बाहर लेकर जाया ही नहीं जा सकता. ईश्वरीय शक्तियां स्वयं उसकी सुरक्षा करती हैं. लोग बताते हैं कि जब-जब मूर्ति को चुराने की कोशिश की गई, चोरों के साथ कुछ न कुछ हादसा हो गया और वे मूर्ति को छोड़कर भागने के लिए विवश हो गए. इस बार भी ऐसा ही होगा. वैसे भी देश में भगवान को हाईजैक करना मूर्तियों को चुराने से आसान है. चतुर-सुजान मूर्ति चोरी के आपराधिक पचड़े में नहीं पड़ते. वो सीधे भगवान को ही हाईजैक कर लेते हैं. उनकी कीर्ति-स्थली बदल देते हैं. देवताओं की लीला भूमि बदल जाती है. आस्था के नए केन्द्र स्थापित हो जाते हैं. लगभग एक जैसे नाम वाले दर्जनों स्थल इस देश में हैं. इनमें से कौन सा असली है और कौन सा नकली, इसपर लंबी बहस की जा सकती है. शास्त्रों में स्थलों का विवरण इशारों में किया गया है. युगों के बदलने के साथ नदियों और पर्वतों के नाम भी बदल गए. नए-नए स्थल चिन्हित होते गए और लोगों की आस्था वहां से जुड़ गई. इसमें किसी का नुकसान नहीं है. सबके अपने-अपने राम हैं और अपनी-अपनी शबरी. चोरी-चकारी करना मंदबुद्धि का काम है.