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छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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Bhatapara : भाटापारा – धान की बढ़ती कीमत और पोहा में घटती मांग l परिणाम – परिचालन से बाहर होने लगीं हैं पोहा मिलें l यह ऐसा दोहरा संकट है जिसकी कभी कल्पना भी नहीं थी l विपदा, इससे भी आगे जाने की आशंका इसलिए है क्योंकि अन्य उत्पादक राज्यों के पोहा की कीमत अपेक्षाकृत कम है।इसके अलावा वहां धान की खरीदी समर्थन मूल्य पर नही होती।
70 का दशक था जब पोहा का उत्पादन हाथों से किया जाता था l मांग बढ़ी तो मशीनें आई l 90 के दशक में इस क्षेत्र में और भी नई तकनीक ने प्रवेश किया l यही वह कालखंड था, जब पोहा यूनिटों की स्थापना का काम तेजी से बढ़ा l बाद के दशकों में इसने जो बढ़त ली, उसके बाद इसमें दूसरे जिलों ने भी अवसर देखा l आज लगभग हर जिले में पोहा मिलें संचालन में हैं लेकिन अब यह सभी संकट में आ चुके हैं l
70 के दशक में शुरु हुए पोहा उद्योग के लिए 2010 से 2020 तक का कालखंड एक तरह से स्वर्ण युग माना जा सकता है क्योंकि भाटापारा के पोहा उद्योग को देश स्तर पर पहचान मिली l यही वह ऐसा दशक था, जब इस क्षेत्र में मध्यप्रदेश और गुजरात जैसे नए प्रतिस्पर्धी राज्य आए l इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी ऐसा ही माहौल बना l अब संकट द्वार पर आकर खड़ा हो चुका है l
उत्पादक राज्यों की बढ़ती संख्या और स्थानीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा के बीच, अब धान की हर बरस बढ़ती कीमत, नियमित संचालन में बाधा बन रही है क्योंकि लागत व्यय हर साल बढ़ रहा है जबकि उत्पादन की कीमत स्थिर है, तो उपभोक्ता राज्यों के साथ घरेलू मांग भी लगातार गिर रही है l ऐसे में अस्तित्व पर संकट मंडराने लगा है l विकल्प दूर – दूर तक नजर नहीं आ रहा l
छोटी – बड़ी मिलाकर लगभग 180 पोहा मिलें संचालित हो रहीं हैं l इनमे लगभग 20 हजार प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष श्रमिकों को काम मिलता है l तैयार उत्पादन में पर्याप्त मांग नहीं निकलने से यह श्रमिक भी संकट में हैं क्योंकि मिलों का संचालन नियमित नहीं हो पा रहा है l स्थिति इतनी विकट है कि कहीं काम के घंटे कम किए जा रहें हैं, तो कहीं उत्पादन कम करने जैसे फैसले विवशता में लिए जाने लगे हैं l
पूंजीगत समस्या, बढ़ती लागत, घटती मांग और ताजा संकट को ध्यान में रखते हुए सरकार से आग्रह है कि ऐसी प्रोत्साहन नीति बनाई जाए, जिससे प्रदेश के पोहा उद्योगों को राहत मिल सके l
कमलेश कुकरेजा, संरक्षक, पोहा मिल एसोसिएशन, भाटापारा