हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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भिलाई। देश की कई प्रमुख स्टील इंडस्ट्री से जुड़ कर अपने लंबे अनुभव से स्टील सेक्टर को नई दिशा देने वाले और भिलाई स्टील प्लांट के पूर्व एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर मलय मुखर्जी अब हमारे बीच नहीं रहे। कोविड की वजह से दिल्ली में उनका निधन हो गया है। शनिवार शाम निधन हुआ है। निधन की खबर मिलते ही भारतीय इस्पात प्राधिकरण-सेल की इकाइयों संग आर्सेलर मित्तल, जेएसडब्ल्यू में भी शोक की लहर दौड़ गई। मलय मुखर्जी आर्सेलर मित्तल, जेएसडब्ल्यू सहित कई कंपनियों के बोर्ड मेंबर रह चुके हैं। इस वजह से वह स्टील सेक्टर में अपनी छाप छोड़ गए हैं। निधन की खबर लगते ही भिलाई में लोगों ने उनके कार्यकाल को याद करते हुए सोशल मीडिया के माध्यम से श्रद्धांजलि दी।
राजनीतिक परिवार से था नाता, बेटे की मौत भी रहस्य रही
भिलाई के श्रमवीरों के फौलादी इरादों पर आधारित किताब ‘भिलाई एक मिसाल-फौलादी नेतृत्वकर्ताओं की’ और इस्पातनगरी के इतिहास को बखूबी बयां करती किताब ‘वोल्गा से शिवनाथ तक’ के लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने बताया कि मलय मुखर्जी का देश के बड़े राजनीतिक परिवार से नाता था। कद्दावर श्रमिक नेता और देश के पूर्व इस्पात मंत्री मोहन कुमार मंगलम के वह दामाद थे। कुमार मंगलम की मौत एक हवाई दुर्घटना में हुई थी और एक दुखद योग यह रहा कि मलय मुखर्जी के बेटे और कुमार मंगलम के नाती मुक्तेश मुखर्जी की मौत भी एक रहस्यमय विमान हादसे में हुई थी। मार्च 2014 में मलेशियन एयरलाइन की फ्लाइट में मुक्तेश अपनी पत्नी के साथ थे और यह विमान उड़ाने के दौरान गायब हो गया था, जिसका अब तक पता नहीं चला। मलय मुखर्जी भले ही देश-विदेश की कई बड़ी स्टील कंपनियों के साथ जुड़े रहे लेकिन उनका मन भिलाई में ही रमता था। उन्होंने भिलाई में बसने के इरादे से स्मृति नगर में प्लॉट भी लिया था लेकिन परिस्थितिवश बीते दशक में उन्होंने आफिसर्स एसोसिएशन के एक बड़े पदाधिकारी को यह प्लॉट बेच दिया। तब प्लॉट के दस्तावेजों के हस्तांतरण के लिए मुखर्जी भिलाई आए थे तो उनके सम्मान में भिलाई बिरादरी ने कला मंदिर में एक भव्य कार्यक्रम भी रखा था।
स्व मुखर्जी के दिवंगत पुत्र मुक्तेश अपनी पत्नी के साथ
स्व मुखर्जी के ससुर और पूर्व इस्पात मंत्री मोहन कुमार मंगलम
ऐसी रही स्व.मुखर्जी की वर्किंग जर्नी
स्वर्गीय मलय मुखर्जी सन 1972 में भारतीय इस्पात प्राधिकरण-सेल के इस्को बर्नपुर स्टील प्लांट से जुड़े। उत्पादन गति बढ़ाने और कंपनी को लाभ में लाने की चर्चा सेल की अन्य इकाइयों तक पहुंच चुकी थी। सन 1980 में कंपनी ने इन्हें भिलाई स्टील प्लांट भेजा। यहां आयरन स्टील जोन के महाप्रबंधक थे। भिलाई स्टील प्लांट-बीएसपी में 90 के दशक में वह एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर-ईडी वर्क्स बने। इसके बाद उन्होंने आर्सेलर मित्तल को ज्वाइन किया और यूरोप चले गए। आर्सेलर मित्तल को नई दिशा दिखाने के बाद वह जेएसडब्ल्यू और एनएमडीसी भी जुड़े थे। जेएसडब्लयू स्टील के स्वतंत्र निदेशक थे। एस्सार स्टील के सीईओ भी रह चुके थे। 2009 से 20012 के बीच एस्सार स्टील इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी खड़गपुर से भी जुड़े रहे। 2008 से 2009 के बीच करीब पांच माह तक आर्सेलर मित्तल के बोर्ड मेंबर भी रहे। लंदन में सेवा देते रहे। लंदन में ही 2006 से 2008 के बीच आर्सेलर मित्तल के जनरल मैनेजमेंट बोर्ड के मेंबर भी रहे।
बेहतर तालमेल और सकरात्मक सोच पर था विश्वास
लेखक मुहम्मद जाकिर हुसैन ने बताया कि बीएसपी के आयरन स्टील जोन के जनरल मैनेजर रहते हुए उन्होंने कई बड़े कदम उठाए, जिससे उत्पादन की गति में तेजी आई। प्रोजेक्ट प्लानिंग को लेकर वह खुद सक्रिय रहते थे। जूनियर अधिकारियों के साथ बेहतर तालमेल और सकारात्मक सोच के साथ संबंधित विभागों में खुद पहुंच जाते थे। उनके साथ काम कर चुके एक्स बीएसपी आफिसर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सरोज रंजन दास बताते हैं कि मलय मुखर्जी बहुत डायनेमिक थे। जूनियर अधिकारियों के साथ वह खुद इस्पात भवन स्थित प्रोजेक्ट प्लानिंग एंड इंजीनियरिंग विभाग में आकर बैठ जाते थे। इस्पात उत्पादन को गति देने के लिए वह प्लानिंग स्तर पर वह हमेशा सक्रिय रहे। इस वजह से पूरा विभाग हर वक्त सक्रिय रहता था, जिसका फायदा भिलाई स्टील प्लांट को ही मिला।