हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
नशेड़ी बेटे से परेशान होकर बाप घर छोड़ कर चला गया. नशे की तलब में भन्नाए बेटे ने मां की हत्या कर दी. इसके बाद स्टील के गिलास से उसका चेहरा गोद दिया. बाप हाथ झाड़कर अलग खड़ा हो गया था और बच्चों की परवरिश निजी स्कूल में टीचर की नौकरी करने वाली मां के कंधों पर आ गई थी. नशेड़ी बेटे को संभालना उसके बस में नहीं था. नशे के लिए घर में चोरी, माता-पिता की पिटाई करने से लेकर उनकी हत्या करने की घटनाएं आए दिन सामने आती हैं. बावजूद इसके नशा और नशेड़ी को लेकर न तो सरकार गंभीर है और न ही समाज. कहने को तो भारत पिछले कुछ वर्षों से युवा देश है पर युवाओं की फिक्र किसे है. शिक्षा उद्योग डिग्रियां बेचने में मस्त है. महंगी डिग्रियों के चलते बैंकों ने ऋण योजना चला रखी है जिसमें ऋण लेने वाले युवाओं के माता-पिता अपनी स्थायी संपत्ति को गिरवी रख देते हैं. कोई खेत बेच कर पढ़ाई करवा रहा है तो कोई जीवन भर की जमा पूंजी लगाकर खरीदे गए मकान को बैंकों में गिरवी रख रहा है. डिग्री के बावजूद नौकरियां मिलती नहीं. कोरोना काल के लॉकडाउन के दौरान डिग्री लेकर निकले विद्यार्थियों की लगी लगाई नौकरी चली गई. दो साल का कैम्पस सिलेक्शन शून्य हो गया. पर सरकार खामोश रही. जब होनहारों के साथ यह हो रहा है तो औसत दर्जे का छात्र क्या करेगा. माना कि छोटे-मोटे काम धंधे से भी अच्छा रोजगार हो सकता है. कई बार तो निजी क्षेत्र में नौकरी करने से बकरी चराना या समोसे बेचना बेहतर सिद्ध होता है. इन छोटे-मोटे धंधों से कमाई भले ही अच्छी हो, पर मौजूदा भारतीय समाज में इन्हें इज्जत नहीं मिलती. लोग गले में आई-कार्ड लटकाकर 10-15 हजार की नौकरी करने को बेहतर समझते हैं. इससे एक ऐसे समाज का निर्माण हो रहा है जहां सपने तो बेहद रंगीन हैं पर कूंची गंजी हो चुकी है. ऐसे बच्चे अकसर नशे कि गिरफ्त में फंस जाते हैं. बात-बात पर पार्टी करने की एक नई संस्कृति पैर जमा चुकी है. 9वीं-10वीं के बच्चे भी दारू पार्टी करने लगे हैं. इनमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं. दारू दुकानों से लेकर दवा दुकानों तक में नशा बिक रहा है. दारू की भी ऑनलाइन डिलीवरी होने लगी है. नशा करने के और भी तरीके बताने के लिए अपने गूगल-बाबा तो बैठे ही हैं. नशे के खिलाफ केवल प्रवचनों से कुछ नहीं होगा. हर साल 10 लाख से ज्यादा ग्रेजुएट पैदा हो रहे हैं. 50 लाख से ज्यादा ग्रेजुएट बेरोजगार हैं. बीटेक की डिग्री लेकर लोग सेल्समैन बने हुए हैं. ऐसे में सामान्य ग्रेजुएट कहां जाए? वह क्या पढ़े और क्यों पढ़े? इसका जवाब दिये बिना नशाखोरी और उससे उपजने वाली बीमारियों का इलाज करना संभव नहीं है. समाज का एक बड़ा तबका बेरोजगार होगा तो तरह-तरह के अपराध अपने आप बढ़ते चले जाएंगे.