हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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_दीपक रंजन दास
ईडी अर्थात एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट अर्थात प्रवर्तन निदेशालय। यह एक आर्थिक खुफिया एजेंसी है जो भारत में आर्थिक अपराधों से लडऩे के लिए जिम्मेदार है। यह भारत सरकार के वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग का हिस्सा है। ईडी मुख्यत: पांच प्रकार के कानूनों के तहत केस दर्ज करती है। इनमें धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए), विदेशी मुद्रा प्रबंधन अधिनियम (फेमा), विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (फेरा), भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम और विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी गतिविधियों की रोकथाम अधिनियम (कॉफेपोसा) शामिल हैं। इनमें भगोड़ा आर्थिक अपराधी अधिनियम 2018 में लाया गया। जाहिर है कि इतनी बड़ी-बड़ी जिम्मेदारियां और इतनी सारी ताकत जिस एजेंसी के पास हों, उसमें काम करने वाले भी बेहद काबिल होने चाहिए। उनकी कार्यक्षमता ऐसी होनी चाहिए कि कोई उनपर उंगली न उठा सके। पर देश में अमूमन जैसा होता है, ईडी के साथ भी वही सबकुछ हो रहा है। ईडी से पहले सीबीआई को सर्वशक्तिमान समझा जाता था। तेज तर्रार विपक्षी नेताओं के खिलाफ सीबीआई को लगा दिया जाता था। जिस सीबीआई का इंदिरा गांधी ने जमकर इस्तेमाल किया था, उसी सीबीआई ने एक दिन इंदिरा गांधी को ही गिरफ्तार कर लिया। यह घटना है 3 अक्टूबर, 1977 की। जनता पार्टी की सरकार को बने कुछ ही दिन हुए थे। इंदिरा को चुनाव प्रचार के लिए खरीदे गए जीपों में कमीशनखोरी के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। उन्हें गिरफ्तार करने के बाद सीबीआई का काफिला उन्हें बडख़ल रेस्ट हाउस ले जा रहा था। रास्ते में पडऩे वाला रेलवे फाटक बंद था। काफिला रुका तो हजारों समर्थकों ने काफिले को घेर लिया। इंदिरा ने इस अवसर को भी खूब भुनाया। वे गाड़ी से उतर कर सड़क पर बैठ गईं। दूसरे दिन उन्हें अदालत में पेश किया गया। अदालत ने आरोपों के समर्थन में सबूत मांगे। सबूत थे नहीं। सीबीआई को फटकार मिली और इंदिरा रिहा हो गईं। इसे इतिहास में ऑपरेशन ब्लंडर कहा गया। उस समय मीडिया का वह हाल नहीं हुआ था, जो आज हुआ पड़ा है। अखबारों से लेकर पत्रिकाओं तक में सरकार के खिलाफ खूब कार्टून छपते थे। पत्रकारिता निष्पक्ष थी। सरकार की अच्छी खासी क्लास लगाई जाती थी। पर अब वो दिन नहीं रहे। मनी लांड्रिंग और घोटालों का आरोप लगाकर ईडी ऐन चुनाव से पहले नेताओं और अफसरों की गिरफ्तारी करती है। हफ्तों, महीनों उनसे पूछताछ करती है। अखबारों को बयान देती है। इधर अपराध साबित करना तो दूर, आरोप के समर्थन में दस्तावेज तक नहीं जुटा पाती। ऐसा ही फिर हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ शराब घोटाला मामले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग केस को रद्द कर दिया है। सर्वोच्च अदालत ने कहा है कि मामले में कोई विधेय अपराध या अवैध गतिविधि नहीं हुई है तो मनी लॉन्ड्रिंग का मामला नहीं बनता। शिकायत आयकर अधिनियम के अपराध पर आधारित थी, ये पीएमएलए के तहत शेड्यूल अपराध नहीं है। चुनावी माहौल में शीर्ष अदालत की यह टिप्पणी बेहद महत्वपूर्ण है।