हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
बचपन में जब-जब डांट पड़ती, तब-तब ऐसा लगता कि हमें जल्दी से जल्दी बड़ा हो जाना चाहिए. जब भी किसी बच्चे की मांग पूरी नहीं होती, वह सोचता है कि जब वह बड़ा हो जाएगा तब अपनी सारी ख्वाहिशें पूरी कर लेगा. और फिर एक दिन वह बड़ा हो जाता है. तब उसे समझ में आता है कि परिवार का मुखिया होना एक कांटों से भरा ताज है. इसमें टीम लीडर होने की खुशी कम है और जिम्मेदारियों का बोझ अधिक. छत्तीसगढ़ के लिए शनिवार का दिन बेहद महत्वपूर्ण रहा. विधायकों के प्रबोधन कार्यक्रम में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मंडाविया, उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष सतीश महाना, उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने खुलकर लोकतंत्र की बात की. धनखड़ ने दो टूक कहा कि कोई भी अधिकार बिना जिम्मेदारी के नहीं आता. जिम्मेदारियों को निभाने के लिए पक्ष और विपक्ष के विधायकों को मिलकर काम करना होगा. सदन में उनकी भूमिका प्रतिद्वंद्वी की नहीं हो सकती. आलोचना भी रचनात्मक और समाधानपरक होनी चाहिए. महाना ने विधायकों को जनता के साथ सम्पर्क और संवाद को बनाए रखने के लिए प्रेरित किया. मनसुख मंडाविया ने फीडबैक को महत्वपूर्ण मानते हुए जनता से लगातार संवाद के महत्व को रेखांकित किया. साथ ही उन्होंने अध्ययनशीलता पर जोर दिया. लोकसभा अध्यक्ष ने विधायकों से अपनी जानकारी के स्तर को लगातार बढ़ाने की समझाइश दी. यह एक सुखद संयोग है कि विधायकों का यह प्रबोधन ऐसे समय में हुआ जब अयोध्या में रामलला के विग्रह की प्राणप्रतिष्ठा हो रही है. लोकतंत्र को नया नाम भले ही 20वीं सदी में मिला हो पर इसकी नींव त्रेतायुग में पड़ चुकी थी. प्रभु श्रीराम ने लोकजीवन के आदर्शों को स्थापित करने के लिए त्याग और तपस्या की थी. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने अपने जीवनकाल में लोकतंत्र के उच्चतम आदर्शों को स्थापित किया. यह कहना है कि कलियुग में केवल ईश्वर का नाम लेने से ही सारे पाप कट जाएंगे, एक बहुप्रचारित प्रवंचना मात्र है. राम राज्य ऐसे ही नहीं आ जाता. आज किसी धोबी ने मुंह खोला तो वह जेल में होगा. हो सकता है दूसरे ही दिन वह लापता हो जाए. वनवास भी आसान नहीं होगा. मिनरल आरओ वाटर वाला आदमी नदी का जल पीते ही बीमार पड़ जाएगा. प्रभु श्रीराम ने वानरों और रीछों की सेना के साथ लंका विजय किया. आज का राजा इन्हें वंचित मानता है. वह इनके जंगल-गांव उजाड़ता है और मुफ्त की राशन-बिजली देकर उन्हें रिझाने की कोशिश करता है. जिस तरह मनुष्य के शरीर में नाक-कान-आंख, सिर-पैर, पेट-पीठ की अपनी-अपनी जगह निश्चित है, उसी तरह प्रकृति का संतुलन भी शाश्वत है. प्रभु श्रीराम ने धोबी का मुंह नहीं पकड़ा, निषादराज को अयोध्या नहीं बुलाया, शबरी के जूठे बेरों पर नाक-भौं नहीं सिकोड़ी, सुग्रीव, अंगद, जामवन्त सभी को समुचित सम्मान दिया. यहां तक कि युद्धभूमि में धराशायी रावण को भी अपमानित नहीं किया. क्या हम ऐसा कर पाएंगे?