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Gustakhi Maaf: चुनाव के नाम से ही अब लगता है डर


-दीपक रंजन दास
लोकसभा चुनाव को ज्यादा दिन नहीं रह गए हैं. एक तो विधानसभा चुनाव के नतीजे, ऊपर से धड़ाधड़ पड़ रहे छापों ने बड़े नेताओं और पूर्व मंत्रियों के हाथ पैर ठंडे कर दिये हैं. कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव के टिकट समय से काफी पहले तय कर देने का फैसला किया है. इसके लिए संगठन ने आवेदन मंगवाने भी शुरू कर दिये हैं. पर विधानसभा चुनाव जैसा उत्साह अभी दिखाई नहीं दे रहा. उस समय सब यही मानकर चल रहे थे कि जिसे भी टिकट मिलेगी वह पक्का जीत जाएगा. अब स्थिति उलट है. कांग्रेस के बड़े नेताओं और पूर्व मंत्रियों को लग रहा है कि इस बार चुनाव में खड़े हुए तो बुरी तरह भद्द पिटने वाली है. वैसे विधानसभा के 90 सीटों के मुकाबले लोकसभा में केवल 11 ही सीटें होती हैं. इस लिहाज से देखा जाए तो अब तक 160 आवेदनों का आ जाना भी मायने रखता है. पर ये सभी आवेदन या तो युवाओं के हैं या फिर नए चेहरे हैं. वैसे भी कांग्रेस के बड़े नेता अब ज्यादा हाथ पैरा नहीं हिलाते. पिछली सरकार लगभग वन मैन शो थी जिसमें अंतिम दिनों में एक को-पायलट को शामिल कर लिया गया था. इसका भी ज्यादा असर देखने को नहीं मिला. अधिकांश मंत्रियों ने अपनी गजब छीछालेदर करवाई थी. अब वे लोकसभा की टिकट मांगें भी तो किस मुंह से. एक खतरा और सता रहा है. जब से छापेमारी की बहार आई है, धनबल और बाहुबल के आधार पर चुनावी मंसूबे बांधने पर विराम सा लग गया है. वरिष्ठ नेताओं को यह भी पता है कि यदि टिकट मांग लिया तो प्रचार में अपनी ही दमड़ी खर्च करनी पड़ेगी. पिछली सरकार 15 साल बाद बनी थी. पांच साल चली और बाहर हो गई. अब न जाने कितने साल तक और इंतजार करना पड़ेगा. ऐसे में अपनी अंटी ढीली करने का कोई मतलब नहीं है. पार्टी फंड की उन्हें ज्यादा उम्मीद नहीं है. चुनाव फाइनेंस करने वाले भी दुबक गए हैं. 2018 के चुनाव से पहले युवक कांग्रेस का जबरदस्त बोलबाला था. सरकार बनते ही इनमें से अनेक कमाऊ पूत बन गए और सड़क की राजनीति से किनारा कर लिया. वैसे भी अपनी ही सरकार के खिलाफ क्या हंगामा करते. पर इन युवाओं में थोड़ी जान अभी बाकी है. भिलाई विधायक देवेन्द्र यादव की दोबारा जीत से उनके हौसले बने हुए हैं. वैसे एक तरह से यह अच्छा भी है. पार्टी की अभी जो हालत है, उसने जबरदस्त री-शफल की जरूरत पैदा कर दी है. अब जीतने वाले या जिताने वालों की नहीं बल्कि साहस के साथ खड़े होने वालों की जरूरत है. पिछले चुनाव के दौरान भूपेश लगातार कहते रहे हैं कि अंग्रेजों की बंदूकों से नहीं डरने वाले कांग्रेसी किसी और से क्या डरेंगे? उनके तेवर बरकरार हैं. युवाओं का साथ मिला तो वे फिर नई पारी खड़ी कर सकते हैं.