हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
नक्सलवाद को लेकर देश में कई तरह के रिवायतें (नरेटिव) हैं। नक्सलवाद को लेकर आरोप प्रत्यारोप भी खूब हुए। पर इन सबसे परे एक सत्य हमेशा से आम हिन्दुस्तानी के अंतरमन को कचोटता रहा है। नक्सल मुठभेड़ों में मरने वाले दोनों ही तरफ के लोग इसी देश के नागरिक हैं। कभी आदिवासियों की मौत होती है तो कभी जवानों की। आदिवासियों को कौन बरगला रहा है, क्यों बरगला रहा है इन सवालों का उत्तर ढूंढना मुश्किल है। पर जो तथ्य सामने हैं वो यह बताने के लिए काफी हैं कि इस संघर्ष में सबसे ज्यादा नुकसान आदिवासियों का हो रहा है। पहले नक्सलियों ने आदिवासियों को हथियारबंद किया और जवानों पर लगातार हमले किये। चूंकि नक्सलियों के पास आदिवासियों की फौज थी इसलिए वो इस संघर्ष में ज्यादा ताकतवर नजर आते थे। उनके सैनिक न केवल जंगलों में रहने के अभ्यस्त थे बल्कि वे इन जंगलों के चप्पे-चप्पे से वाकिफ भी थे। तब छत्तीसगढ़ सरकार ने भी आदिवासी युवाओं को स्पेशल पुलिस अफसर के रूप में प्रशिक्षित करना और उन्हें हथियारबंद करना शुरू किया। सलवा-जुडूम आंदोलन भी चलाया गया। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सलवा जुडूम और एसपीओ को बैन कर दिया। संघर्ष की इस कहानी पर पूर्ण विराम लगा झीरम घाटी में ठीक 11 साल पहले 25 मई 2013 को। नक्सलियों ने घात लगाकर नेताओं के काफिले पर हमला कर दिया। इस हमले में बस्तर टाइगर के रूप में जाने जाने वाले सलवा जुडूम के नेता महेन्द्र कर्मा समित कांग्रेस के कई दिग्गज मारे गए। इस तरह के कई बड़े हमले बस्तर इलाके में हो चुके हैं। इस खूनखराबे ने न केवल आदिवासियों के जीवन को अनिश्चित कर रखा है बल्कि विकास को भी प्रभावित किया है। साय सरकार ने झीरम हमले की 11वीं बरसी पर नक्सलियों के लिए नई पुनर्वास नीति की घोषणा की है। इसकी घोषणा करते हुए उप मुख्यमंत्री एवं गृह मंत्री विजय शर्मा ने नक्सलियों से भी सुझाव आमंत्रित किया है। बिना सामने आए अपना सुझाव देने के लिए सरकार ने ईमेल और गूगल फार्म जारी किया है। यह एक ऐसा मौका है जिसका लाभ नक्सलवाद से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से जुड़े लोगों को जरूर उठाना चाहिए। अब तक नक्सलियों की तरफ से केवल उनके नेता ही बोलते थे। सरकार की इस पहल ने उनसे उनकी ताकत छीन ली है। अब एक साधारण और सामान्य नक्सली भी अपने दिल की बात सरकार के साथ साझा कर सकता है। वैसे पिछले तीन सालों में लगभग एक हजार नक्सलियों ने आत्मसमर्पण किया है। पर इनमें वो लोग शामिल नहीं थे जो इस समस्या की जड़ में हैं। नई पुनर्वास योजना ऐसे हार्डकोर नक्सलियों को अलग-थलग कर देगी। उधर सुरक्षा बल भी पूरी तैयारी के साथ नक्सलियों को जड़ से उखाडऩे में जुट गए हैं। अब हार्डकोर नक्सली या तो मारे जाएंगे या फिर उन्हें हमेशा के लिए बस्तर को छोड़ कर जाना होगा।