हमारे बारे में

छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।

Gustakhi Maaf: फिर वही जातिगत समीकरण पर राजनीति


-दीपक रंजन दास
अंग्रेजों ने हमें हिन्दू-मुसलमान में बांटा और हमने सारी हदें पार कर दीं. मतांतरित होना कोई नई बात नहीं है. समय-समय पर संतों ने नए मतों का प्रचार किया और लोग उनके अनुयायी हो गए. पर इन सब में एक बात समान है कि सभी की आस्था एक ऐसी अदृश्य शक्ति में है जो इस सृष्टि को चला रहा है. किसी दार्शनिक ने कहा था कि अपढ़-कुपढ़ लोगों के देश में लोकतंत्र एक मजाक बन जाता है. भारत आज इसकी पराकाष्ठा के दौर से गुजर रहा है. भारतीय जनता पार्टी हो या कांग्रेस, सभी जातिगत और क्षेत्रीय समीकरणों की बात करते हैं. मोदी गुजराती हैं तो क्या वे छत्तीसगढ़ के दुश्मन हैं? अगर नहीं, तो फिर क्षेत्रीयता की बातें क्यों की जाती हैं? छत्तीसगढ़ में लोकसभा चुनाव की तैयारियां चल रही हैं. दोनों बड़ी पार्टियों ने कमर कस ली है. दन्तेश्वरी मंदिर से लोकसभा चुनाव प्रचार का आगाज करते हुए भाजपा के प्रदेश प्रभारी ओम माथुर ने कहा कि लोकसभा में सभी 11 सीटें जीतनी हैं. इसके लिए क्षेत्रीय और जातिगत आधार पर नाम तय किये जायेंगे. कांग्रेस भी ऐसा ही करती है. यह क्या बात हुई? योग्यता एक तरफ और जातिगत समीकरण एक तरफ. इसी समीकरण के चलते किसी एक सीट पर चार-छह साहू खड़े हो जाते हैं तो किसी सीट पर 10-12 चंद्राकर. कहीं बघेल से बघेल लड़ रहा होता है तो कहीं वर्मा से वर्मा. ऐसे में सही नेतृत्व कैसे उभरेगा? 10 साल पहले ऐसा लगा था कि लोकतंत्र का यह मजाक अब खत्म होगा. लोगों को लगा था कि व्यक्ति पूजा और जातपात के आधार आधारित राजनीति पर भाजपा अंकुश लगाएगी. पर अब वह भ्रम टूटने लगा है. कांग्रेस के अल्पसंख्यक वाद पर भाजपा के बहुसंख्यकवाद को भारी पड़ना ही था और वह पड़ा भी पर अब यहां भी वही ट्रेन की जनरल बोगी वाला हाल है. खचाखच भरे जनरल बोगी में पहले आदमी हैण्डल पकड़कर केवल पांव धरने की जगह ढूंढता है. इतना मिल गया तो वह ट्रेन में लटका हुआ सफर करता है. पर शनैः-शनैः वह अपना कम्फर्ट जोन ढूंढता है. पहले धक्का-मुक्की कर भीतर पहुंचता है. फिर किसी सीट के किनारे अपनी आधी टिकाता है. फिर ठेलम-ठेली करके अपने लिये पूरी जगह बना लेता है. बस चला तो पालथी मार लेता है और फिर बाजू वाले पर टिककर सो जाता है. यहां तक तो फिर भी ठीक है. पर जब वह अन्य मुसाफिरों के मुंह पर दरवाजा बंद करने लगता है तो मानवता की सीमाओं को लांघ जाता है. छत्तीसगढ़ की सभी 11 लोकसभा सीटों पर कब्जा करने के लिए अभी उसके पास काम-काज का श्रेष्ठ मौका है. फिर वह उसी फंदे पर क्यों झूल जाना चाहती है जिसने कांग्रेस की मिट्टी पलीद कर दी. क्षेत्रीय और जातिगत समीकरणों के चक्कर में कर्मठ कार्यकर्ता हाशिए पर रहे और फिर पार्टी के लिए गड्ढा खोद दिया. क्या ऐसे ही विश्व गुरू बनेगा भारत?