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Gustakhi Maaf: शराब दुकान की दूरी का मायाजाल


-दीपक रंजन दास
शराब का धंधा एक ऐसा धंधा है जिसमें दुकान की दूरी कोई खास मायने नहीं रखती. दुकान शहर के बीच हो, हाईवे पर हो या जंगल में, शराब के शौकीन वहां तक अपनी पहुंच बना ही लेते हैं. शराब दुकानों को लेकर कुछ फिकरे आम हैं जिनपर न तो जनता ज्यादा कान धरती है और न ही पीने वालों को कोई फर्क पड़ता है. शराब दुकान का विरोध करने वाले कहते हैं कि शराब दुकानों के आसपास मनचले खड़े रहते हैं जिसके कारण महिलाओं का वहां से आना जाना मुश्किल हो जाता है. हकीकत इससे परे हैं. अधिकांश लोग अपनी बाटली लेकर चुपचाप नौ-दो ग्यारह हो जाते हैं. कुछ लोग आधे पैसे हाथ में लिये किसी ऐसे साथी का इंतजार करते मिल जाएंगे जो बाकी पैसा मिला दे और दोनों भाई बैठकर पेग-शेग लगा लें. वैसे बैठने की जगह न मिले तो कुछ लोग खड़े-खड़े ही गटक लेते हैं. डिस्पोजेबल ग्लास और 5 रुपए का चखना पैकेट इनकी बदौलत खूब चलता है. वैसे बुरा न मानें तो एक बात कहें? सबसे ज्यादा अनुशासित भीड़ भी शराब दुकानों पर ही नजर आती है. शराब ठेकेदार एक बार हुड़कता है और लोग कतार में लग जाते हैं. इससे ज्यादा हो-हल्ला और मारपीट तो पानी भरने को लेकर हो जाता है. पर एक नियम है जो कहता है कि शराब दुकानों को स्कूल-कालेज, अस्पताल या धार्मिक स्थलों के आसपास नहीं होना चाहिए. यहां आसपास से मतलब 50 मीटर है. 51, 52 या 53 मीटर दूर दुकान खोली जा सकती है. कैसी वाहियात सोच है? स्कूल-कालेज और धार्मिक स्थल से दूरी का यह मकसद होना चाहिए कि वह रास्ते में ही न पड़े. शराब दुकान बेशक इन स्थलों के बगल में हो पर उसका प्रवेश-निकासी मार्ग पिछली गली से होना चाहिए. न दारू वाले भक्तों को देखें और न भक्तों को बेवड़ों के दर्शन हों. रही बात सरकारी स्कूल-कालेजों की तो यहां का तो रिकार्ड ही खराब है. दूर-दराज के स्कूलों में गुरुजी पव्वा लगाकर स्कूल आते हैं. बच्चों को कुछ काम सौंप देते हैं और कुर्सी पर ही ऊंघने लगते हैं. दुकान के पास या दूर होने का उन्हें कोई खास फर्क नहीं पड़ता. अपना स्टाक वो अपनी गाड़ी की डिकी में लेकर चलते हैं. बहरहाल, हाईकोर्ट के संज्ञान के बाद शासन ने 50 मीटर की दूरी को बढ़ाकर 100 मीटर करने का फैसला किया है. शराब दुकानें अब 101, 102 मीटर या उससे अधिक दूरी पर खोली जा सकेंगी. विरोध करने वाले खुश, हाईकोर्ट भी संतुष्ट और सरकार के सिर सेहरा भी. आखिर यह शराब विरोधी सरकार है. शराब के खिलाफ कोई तो कदम उठाना ही था. कुछ धुंधली-धुंधली सी तस्वीरें याद आती हैं – कुछ महिलाएं खूब सज-धज कर सड़क पर बैठी हैं. उनके सामने अंग्रेजी शराब की बोतलें, कांच के गिलास रखे हैं. वे इत्मीनान से पेग तैयार कर रही हैं और इस तरह शराब का विरोध कर रही हैं.