हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
पिछले कुछ दशकों में धर्मांतरण एक बड़ा मुद्दा हो गया है. वनांचलों में ईसाई मिशनरियों की सक्रियता के खिलाफ काफी बवाल मच चुका है. लव जिहाद और जबरिया धर्मांतरण को लेकर मुस्लिम भी निशाने पर रहे हैं. पर अब जो हो रहा है, वह अभूतपूर्व है. ईसाई धर्म और इस्लाम का प्रादुर्भाव भारत की धरती से बाहर हुआ. इसलिए इन्हें लेकर ज्यादा बवाल होता है. पर सैकड़ों पंथों का जन्म इसी भारत भूमि पर हुआ. बौद्ध, सिख और जैन पंथों की उत्पत्ति भी यहीं हुई. इनमें से बौद्ध धर्म की उत्पत्ति 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व में एक श्रमण परम्परा के रूप में पूर्वी गंगा के मैदान में हुई जो धीरे-धीरे पूरे एशिया में फैल गई. यह दुनिया का चौथा सबसे बड़ा धर्म है, जिसके 52 करोड़ से अधिक अनुयायी (बौद्ध) हैं. यह वैश्विक आबादी का लगभग सात प्रतिशत है. जैन धर्म का प्रसार छठवीं शताब्दी में हुआ जिसके अंतिम तीर्थंकर भगवान महावीर थे. सिख धर्म की स्थापना गुरू नानक देवजी ने 15वीं शताब्दी में की थी. नानक देवजी ने अपने समय में व्याप्त कुप्रथाओं, अंधविश्वासों, जर्जर रूढ़ियों और पाखण्डों को दूर करते हुए प्रेम, सेवा, परिश्रम, परोपकार और भाई-चारे की दृढ़ नीव पर सिख धर्म की स्थापना की. पंथों और धार्मिक मान्यताओं के भिन्न-भिन्न होने के बावजूद इनके हिन्दू होने पर कभी कोई सवाल नहीं उठा. आस्थाओं का यह परिवर्तन स्वीकार करने वाली पीढ़ियां कबकी गुजर गईं. अब ऐसी कोई बात नहीं रही. इन परिवारों में जन्म लेने वाले स्वतः इन पंथों के अधीन हो जाते हैं. ऐसे में बिलासपुर जिले के बिल्हा ब्लाक स्थित भरारी की प्राथमिक शाला में जो नया उपद्रव शुरू हुआ है, वह विचलित करता है. इस प्रायमरी स्कूल के हेडमास्टर ने कथित रूप से विद्यार्थियों को बौद्ध धर्म को अपनाने की सीख दी. मौजूदा दौर में अधिकांश कुप्रथाएं हाशिए पर जा चुकी हैं. अंधविश्वासों के जंगल से भी अधिकांश लोग निकल आए हैं. रूढ़ियों और पाखण्डों को हर दिन कोई न कोई चुनौती दे रहा है. अब विधवाएं सफेद साड़ी नहीं पहनतीं, उनका पुनर्विवाह भी होता है. यज्ञोपवीत और शिखा का पूरी निष्ठा के साथ धारण करने वाले भी उंगलियों पर गिने जा सकते हैं. लोग हनुमान मंदिर के बाहर खड़े होकर भी सीने पर क्रॉस बनाते हैं. युवा जोड़े मजारों पर जाते हैं. बड़ी संख्या में लोग साईं की भक्ति करते हैं और कुत्तों को बिस्किट खिलाते हैं. ऐसे में इस हेडमास्टर का उतावलापन समझ में नहीं आता. उसे किसी ने बौद्धों की संख्या बढ़ाने का ठेका दिया हो, यह बात गले से नहीं उतरती. तो क्या उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा फुंफकार रही है? क्या वो धर्म के नाम पर बवाल मचाकर स्वयं को बौद्धों का ठेकेदार घोषित करना चाहता है? छत्तीसगढ़ में जोगीमरा गुफा, सीताबेंगरा गुफा, सिरपुर, मल्हार और बलोदाबाजार के डमरू में बौद्धों की अच्छी खासी उपस्थिति रही है. बावजूद इसके छत्तीसगढ़ की आबादी में उनका प्रतिशत केवल 0.28 है.