हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
18वीं लोकसभा के लिए चुनाव सम्पन्न हो गए। 10 साल से केन्द्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी अब भी देश की सबसे बड़ी पार्टी है। भले ही सीटें कम हुई हों पर मोदी तीसरी बार सरकार बनाने वाले हैं। नतीजे आने के बाद भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा कि 1962 के बाद पहली बार कोई सरकार तीसरी बार रिपीट हो रही है। उनका सीधा इशारा भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की ओर था जो लगातार 16 सालों तक देश के प्रधानमंत्री थे। भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में यह एक अभूतपूर्व घटना है। 1962 और 2024 के परिदृश्य में आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है। इसलिए मोदी के नेतृत्व में मिली यह जीत नेहरू की जीत से कई गुना बड़ी है। पर इस चुनाव ने भाजपा को कई सबक भी दिये हैं। विशेषकर भाजपा की ट्रोल सेना और उसके आईटी सेल के लिए यह सबक बहुत बड़ा है। 2014 से लेकर 2019 तक के चुनाव में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने अपनी पूरी ताकत कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नेस्तनाबूद करने में खर्च कर दी। इतिहास के पन्नों से निकालकर अलग-अलग घटनाओं को जोड़कर इस तरह पेश किया गया कि कांग्रेस देश की सबसे ज्यादा भ्रष्ट, निकम्मी और नाकारा पार्टी नजर आने लगी। उस नेहरू तक के खिलाफ जनमत तैयार किया जाने लगा जिसका पूरा कार्यकाल उपलब्धियों से भरा पड़ा है। विज्ञान का नियम है कि प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है जो परिमाण में बराबर और दिशा में विपरीत होती है। जब ट्रोल सेना का मुकाबला करने में कांग्रेस और यूपीए नाकाम रहे तो कलमकारों ने यह जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। जिस देश में बुद्धिजीवी होना पाप माना जाने लगा था, वहां कलम उठाना भी एक जोखिम था। पर कवियों ने, साहित्यकारों और स्वतंत्र पत्रकारों ने इस चुनौती को स्वीकार किया। ट्रोलर्स के प्रत्येक हमले का जवाब दिया जाने लगा। इसके साथ ही पढ़े लिखे लोग इतिहास खंगालने लग गए। दूध का दूध और पानी का पानी होने लगा। ऐसा नहीं है कि भाजपा के रणनीतिकारों को इसका आभास नहीं था। वो खूब जानते थे कि उनका तिलिस्म टूटने लगा है। इसलिए वह आक्रामक तो हुई पर नतीजे नहीं मिले। वैसे भी आक्रामक होना केवल विपक्ष को शोभा देता है। सत्ता के लिए यह मौका अपनी उपलब्धियां गिनाने का होता है। यही कारण है कि जब चुनाव के नतीजे आए तो हिन्दी पट्टी में भाजपा को जबरदस्त नुकसान हो गया। भरपाई के लिए पश्चिम बंगाल और केरल में की गई मेहनत भी बेकार गई। जिस दीदी को मुसलमान साबित करने की कोशिशें होती रहीं, वह पिछली बार के 22 के मुकाबले इस बार 29 सीटें जीत कर ले गई। दक्षिण में भी मायूसी ही मिली। लद्दाख ने भी साथ नहीं दिया। भाजपा चाहे तो इस गलती को सुधार सकती है पर क्या उसके अंधभक्त उसे ऐसा करने देंगे?