हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
जन-जन के आराध्य मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का भी पेटेंट हो गया है। बिना इजाजत के उनकी मूर्तियां बनाई तो खैर नहीं। प्रभु श्रीराम का पेटेंट किसी ने दिया नहीं है, लेने वालों ने खुद ले लिया है। अब वही तय करेंगे कि प्रभु श्रीराम कहां-कहां गए। श्रीराम कैसे दिखते थे, क्या पहनते थे और कैसे पहनते थे। भाजपा के विधायकों का दावा है कि पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने प्रभु श्रीराम की जो मूर्तियां बनवाई हैं, वो राम जैसी नहीं दिखती। आरोप हैं कि इन मूर्तियों को विकृत बनाया गया। आरोप यह भी है कि इन मूर्तियों को बनाने का ठेका अपने करीबियों को दिया गया। आरोपों का यह सिलसिला इससे भी आगे तक जाता है। आरोप हैं कि जिन पार्टियों को निर्माण का ठेका दिया गया, उन्होंने उसे पेटी कांट्रेक्ट पर दे दिया जिससे गुणवत्ता प्रभावित हुई। शिकायत गुणवत्ता को लेकर है या करीबियों को ठेका देने पर, समझना मुश्किल नहीं है। करीबियों वाला राग अब पुराना हो चला है। कहीं यही सरकार का स्थायी भाव न बन जाए। देश में प्रभु श्रीराम के करोड़ों मंदिर हैं। इन सभी में प्रभु की प्रतिमाएं वहां की स्थानीय शिल्पकला और शैली के अनुरूप हैं। कुछ राज्यों में विशेष किस्म के पाषाण मिलते हैं। इन राज्यों से मूर्तियां बनकर देश के कोने-कोने तक जाती हैं। इससे एक राज्य की शैली दूसरे राज्यों तक पहुंचती है। धातु की बनी प्रतिमाओं के साथ भी ऐसा ही है। अभी अयोध्या में रामलला के जिस विग्रह को स्थापित किया गया, वह भी दक्षिण भारतीय शैली का है। प्रभुश्रीराम आस्था के प्रतीक हैं। कबीर दास जी ने कहा था, ‘जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी।Ó पर ये उक्तियां धराशायी हो रही हैं। अब तो प्रभु श्रीराम का भी आधार कार्ड बनना है। इसलिए फोटो तो क्या फिंगर प्रिंट तक मैच करना चाहिए। आखिर कुछ लोग साबित क्या करना चाहते हैं? उधर देश के प्रधानमंत्री देश को जोडऩे की बातें करते हैं और इधर उसके चिल्हर नेता देश तो क्या परिवारों को तोडऩे में लगे हैं। आस्था पर सवाल उठाने लगे हैं। मोदी कहते हैं कि इस देश में हिन्दू और मुसलमान सदियों से रह रहे हैं और राष्ट्र निर्माण में दोनों की बराबर की भूमिका रही है। इधर, लोग अवाम को भाजपाई हिन्दू और कांग्रेसी हिन्दू में बांट रहे हैं। वैसे भी इतिहास गवाह है कि राज्यों के बीच की सीमाएं दशकों में बदलती हैं पर परिवार के बीच की दीवारें लगभग हर रोज बनती-बिगड़ती हैं। अदालतों में जमीन और मकान को लेकर चल रहे अधिकांश मामले एक ही परिवार के लोगों के बीच होते हैं। अब कोई भरत अपने बड़े भाई के खड़ाऊं रखकर राजपाट नहीं चलाता। अब तो मंथराओं की भी जरूरत नहीं पड़ती। खटास पैदा करने वाले ये बीज न जाने कहां से खुद उड़-उड़ कर आते हैं और जमीन में ऐसा धंसते हैं कि पूरा खेत खरपतवार से भर जाता है।