हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
सरकारी नौकरी में जाने का सबसे सीधा तरीका है पीएससी की परीक्षा में अपना नंबर लगवाना। पर यह तरीका आसान नहीं है। इसके लिए ढेर सारी तैयारी करनी पड़ती है। इसकी तैयारी कराने के लिए भी अलग-अलग दुकानें हैं। ढंग का समाचार पत्र पढऩे वालों को जो बातें यूं ही पता रहती हैं, उसे पढ़ाने के लिए भी कोचिंग कक्षाएं खुली हुई हैं। यहां से बच्चे अच्छी खासी तैयारी करने के बाद पीएससी की परीक्षा दिलाते हैं। जिनका नंबर लग जाता है, उनकी लाइफ सेट हो जाती है। छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग ने प्यून भर्ती परीक्षा के लिए लिखित परीक्षा का आयोजन किया। 150 नंबर की लिखित परीक्षा में कईयों ने 145 से 147 नंबर हासिल किये। लिखित परीक्षा में 98 फीसदी अंक हासिल करने वाले ये बच्चे मगर इमला लिखने में फेल हो गए। इमला 50 नंबर का होता है। इमला का मतलब शुद्ध लेखन। अंग्रेजी माध्यम स्कूल में इसे डिक्टेशन कहते हैं। प्रायमरी क्लासों में शुद्धलेखन या डिक्टेशन करवाया जाता है, अर्थात सुनकर सही शब्द लिखना। वैसे इमला लिखवाने का यह चलन कुछ अखबारों में भी है। कई साल पहले एक राष्ट्रीय अखबार में नौकरी करने गया। प्रबंधन ने तो झट पास कर दिया और सैलरी भी फिक्स कर दी पर शर्त यह रख दी कि अंतिम फैसला संपादक जी का होगा। गिरीश मिश्रा जी संपादक थे। उनसे मिलने गए तो पहले उन्होंने मेरी जेब की तरफ देखा। वहां कलम देखकर आश्वस्त हुए। दराज में से निकालकर एक ए-4 शीट निकालकर सामने रख दिया। बिना किसी भूमिका के उन्होंने बोलना शुरू किया-आशीर्वाद, जिजीविषा, प्रतिद्वंद्वी…. मैं इशारा समझ गया और इन शब्दों को तेजी से लिखने लगा। उनकी नजर मेरी कलम से उभरते अक्षरों पर ही टिकी रही। हैण्डराइटिंग खराब थी, इसलिए थोड़ा संकोच हो रहा था। उन्होंने उसे ताड़ भी लिया। 10 शब्द लिखवाने के बाद वो मुस्कुराए। नौकरी पक्की। बाद के वर्षों में भी कई अखबारों में काम करने का सौभाग्य मिला। शब्दों को लेकर गाहे-बगाहे बहस भी होती रही। सबसे ज्यादा अफसोस इस बात का होता कि खूब पढ़े लिखे कालेज के प्रोफेसर, असिस्टेंट प्रोफेसर तक शब्दों का न केवल गलत उच्चारण करते थे बल्कि उन्हें लिखते भी गलत ही थे। लगभग 50 प्रतिशत लोग श्रीमती को श्रीमति लिखते हैं। आशीर्वाद को आर्शीवाद लिखते हैं। सबसे ज्यादा दुर्गति होती है विद्यालय शब्द की। लोग इसे न केवल विधालय कहते हैं बल्कि लिखते भी हैं। यही इमला जब नौकरी की राह का बड़ा रोड़ा बन जाता है तब जाकर समझ में आता है कि हिन्दी इतनी भी आसान नहीं है। हिन्दी दिवस पर दिया गया भाषण काफी नहीं है। एक और शब्द है दम्पती-अर्थात पति-पत्नी। चलन में इसे दंपति या दंपत्ति लिखा जाता है। दोनों ही गलत हैं। जो लोग हिन्दी को सरल और अंग्रेजी को कठिन समझते हैं, उन्हें कालेजों में हिन्दी परीक्षा के दिन बच्चों का चेहरा अवश्य देखना चाहिए।