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Gustakhi Maaf: रेलगाड़ी के एसी कोच में भी चिंदी चोर


-दीपक रंजन दास
रेलवे लगातार यात्री सुविधा बढ़ाने की कोशिश कर रहा है. गरीबों के लिए रेलवे ही यात्रा का एकमात्र साधन है. जनरल कोच का भाड़ा न के बराबर है. शालीमार (कोलकाता) से कुर्ला (मुम्बई) तक की यात्रा ज्ञानेश्वरी एक्सप्रेस के जनरल कोच में 400 रुपए में की जा सकती है. इसी दूरी का सेकंड एसी का टिकट 2865 रुपए का आता है. जनरल कोच में सुविधा न के बराबर होती है. लोग एक दूसरे की गोद में, सामान रखने के रैक में, टायलेट के अंदर-बाहर बैठकर तथा सीटों के नीचे सोकर भी अपनी यात्रा पूरी करते हैं. इस कोच में चोरी नहीं होती क्योंकि यहां चुराने योग्य कुछ होता ही नहीं है. इसके बाद आता है स्लीपर कोच. शालीमार से कुर्ला का भाड़ा स्लीपर कोच में 700 रुपया है. यह विद्यार्थियों एवं नौकरी की तलाश में यात्रा करने वालों में सर्वाधिक लोकप्रिय है. पहले जहां केवल जनरल क्लास को कैटल (मवेशी) क्लास कहा जाता था वहीं अब स्लीपर क्लास भी इसे श्रेणी में शामिल हो गया है. जो हालत पहले स्लीपर कोच की थी, वह अब तृतीय श्रेणी एसी का है. स्वच्छता का अभाव तो है ही, क्षमता से ज्यादा सवारी इस कोच में घुस जाती है जो आरक्षित सीट वालों की यात्रा को कठिन बना देती है. इसलिए अब परिवार के साथ यात्रा करने के लिए लोग मजबूरन सेकण्ड और फर्स्ट एसी को चुनते हैं. प्रथम श्रेणी का टिकट तो किसी-किसी रूट पर हवाई यात्रा से भी महंगा पड़ता है. प्रथम श्रेणी के कोच सभी ट्रेनों में होते भी नहीं. शालीमार में भी नहीं है. बहरहाल, यहां बात हो रही थी संभ्रांत यात्रियों की. इस वर्ग के यात्री केवल एसी कोच में ही यात्रा करते हैं. एक जमाना था लोग ट्रेनों में सफर करने के लिए तीन-चार पेटियां, एक-दो होल्डऑल लेकर घर से निकलते थे. अब पेटियों का स्थान चक्के वाले सूटकेस ने ले लिया है. होल्डऑल यानी बिस्तर बंद की भी जरूरत खत्म हो गई है. रेलवे ओढ़ने बिछाने का सामान बर्थ पर ही उपलब्ध करा देता है. इसमें दो चादरें, एक तकिया मय गिलाफ, टावल तथा एक कंबल शामिल होता है. इन संभ्रांत लोगों में चिंदी चोर भी शामिल होते हैं. वे ट्रेन से उतरते समय चादर, कंबल, तकिया भी अपने साथ ले जाते हैं. कुछ लोग तो उन लिफाफों को भी मोड़कर सूटकेस में डाल लेते हैं जिसमें रखकर धुली हुई चादरें और कंबल उन्हें दी जाती है. यह हद दर्जे की चिंदी-चोरी है. साल 2023 में ट्रेनों से 15,295 चादरें, 15,303 टावल, 1432 तकिया, 4027 तकिया कवर और 2432 कंबल गायब हो गए. ऐसे चिंदी चोर संभ्रांत होटलों से भी टावल, चम्मच, साबुन की टिकिया चुराते हैं. ट्रेनों में उनकी इस चोरी का खामियाजा अटेंडर को भुगतना पड़ता है. गायब चादर, तकिया, कंबल का पैसा उसके वेतन से काट लिया जाता है. राष्ट्रनिर्माण के लिए सबसे पहल इसी चिंदी-चोरी से तौबा करनी होगी.