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Gustakhi Maaf: तीन दशक में चार गुना बढ़ी शतायु आबादी


-दीपक रंजन दास
दुनिया भर में जीवन प्रत्याशा बढ़ रही है। आंकड़ों में देखें तो पिछले तीन दशक में शतायु लोगों की संख्या 1990 से 2020 के बीच सवा लाख से बढ़कर पौने छह लाख हो गई। 2050 तक शतायु लोगों की संख्या 37 लाख से अधिक हो जाएगी। भारत भी इस दिशा में तेजी से बढ़ रहा है। आज सर्वाधिक शतायु आबादी वाले शीर्ष पांच देशों में भारत चौथे पायदान पर है। सौ साल से अधिक जीने वालों की सर्वाधिक संख्या अमेरिका में है जहां 77 हजार लोग शतायु हैं। इसके बाद जापान का नंबर आता है जहां 61 हजार शतायु हैं। इसके बाद क्रमश: चीन में 48 हजार, भारत में 27 हजार तथा इटली में 25 हजार की आबादी शतायु है। वैसे कुल आबादी में शतायु की संख्या का अनुपात देखें तो तुलना केवल भारत और चीन में ही की जा सकती है। अमेरिका की आबादी 33 करोड़ है जिसमें से 0।27 प्रतिशत लोग शतायु हैं। संयुक्त राष्ट्र के आंकड़ों के अनुसार भारत की आबादी 142।86 करोड़ है जबकि चीन की आबादी 142।57 करोड़ की है। वहीं इटली की आबादी मात्र 5 करोड़ है। इस लिहाज से देखें तो संख्या के लिहाज से भले ही भारत शतायु आबादी की सूची के टॉप 5 में शामिल हो गया है पर प्रतिशत के मामले में वह अभी काफी पीछे है। शतायु लोगों की चर्चा आज इसलिए कि छत्तीसगढ़ में 2457 मतदाता ऐसे हैं जिनकी आयु सौ साल से ज्यादा है। अर्थात उन्होंने आजाद भारत के सभी चुनावों में हिस्सा लिया है। आज जिन सात सीटों के लिए मतदान हो रहा है उसमें भी शतायु लोगों की अच्छी खासी संख्या है। आज जहां मतदान हो रहा है उनमें सर्वाधिक 623 शतायु बिलासपुर में हैं। दूसरे क्रम पर 395 शतायु सरगुजा में हैं। इसके बाद रायपुर 334, रायगढ़ 249, कोरबा 215, जांजगीर चांपा 191 तथा दुर्ग 167 का नम्बर आता है। केन्द्र सरकार आयुष्मान भारत योजना के तहत 70 साल से अधिक उम्र के लोगों को मुफ्त चिकित्सा सेवा देने की तैयारी कर रही है। यह सुविधा एपीएल, बीपीएल सभी को मिलेगी। ऐसा लग सकता है कि इनकी देखभाल के लिए सरकार को अच्छा खासा बजट प्रावधान करना पड़ेगा मगर आंकड़े बताते हैं कि 90 फीसदी शतायु कभी गंभीर रूप से बीमार नहीं पड़े। कभी अस्पताल में भर्ती नहीं हुए। उनका खान-पान और रहन-सहन सादा है। वे भोजन और विश्राम के नियमों का कड़ाई से पालन करते हैं। अच्छी बात यह है कि देश में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ी है। लोग अपने वजन को लेकर सतर्क हुए हैं। मधुमेह और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याओं को लेकर भी वे पहले से कहीं ज्यादा सतर्क हैं। पर चिंता का विषय यह कि यही बात युवा आबादी को लेकर नहीं कही जा सकती। उनमें हृदय रोग और मधुमेह जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं जो पहले केवल 45 पार की आबादी में देखी जाती थीं।