हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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-दीपक रंजन दास
केन्द्र सरकार ने भारतीय न्याय संहिता में संशोधन कर एक नया फरमान जारी कर दिया है. इसके तहत अब हादसे के बाद घायल को छोड़कर भागने वाले ट्रक चालकों पर मामले चलाए जाएंगे. उन्हें 10 साल तक की सजा दी जा सकेगी और उनपर 7 लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकेगा. अर्थात पूरा दोष ट्रक मालिकों और चालकों पर डालकर सरकार हाथ झाड़कर बाजू हट गई है. देश की बड़ी आबादी आज भी सड़क हादसों के लिए भारी वाहनों को ही दोषी मानती है. संभवतः सरकार इसी बात का फायदा उठाना चाहती है. पर हकीकत इससे परे है. अधिकांश हादसे उन छोटे वाहनों की वजह से होते हैं जो यातायात कानूनों को किसी खातिर में नहीं लाते. कोई हाथ दिखाता हुआ रास्ता काटने की कोशिश करता है तो कोई हार्न बजाकर फुर्र से निकल जाना चाहता है. कान में मोबाइल चिपकाए लोग भी कुछ कम नहीं है. शहरों के भीतर तो ट्रक और भारी वाहन ग्रीन लाइट का इंतजार ही करते रह जाते हैं. दुपहिया और चार पहिया वाले रुकने का नाम ही नहीं लेते. ऐसे में सारा दोष ट्रक ड्राइवरों पर क्यों थोप दिया जाना चाहिए? वैसे भी ट्रक चालक अकसर अपने वाहन और स्वयं अपनी सुरक्षा के लिए ही दुर्घटनास्थल से भागता है. अकसर ऐसे चालक अपने ट्रक को सीधे थाने में ले जाकर खड़ा कर देते हैं. क्योंकि वो जानते हैं कि यदि वे दुर्घटना स्थल पर रुके तो वे मॉब लिंचिंग का शिकार हो सकते हैं. उनके वाहन को नुकसान पहुंचाया जा सकता है. वाहन के साथ ही वाहन में लदे सामान को भी भारी क्षति पहुंचाई जा सकती है. सड़क हादसों में गलती ढूंढने का भी अपने यहां एक अजीब फार्मूला है. प्रायः सभी हादसों के लिए, उसमें शामिल बड़े वाहन को ही दोषी मान लिया जाता है. हमारी सड़कों पर ट्रक ही सबसे बड़े वाहन हैं इसलिए लगभग सभी हादसों में उसे ही पब्लिक के आक्रोश का शिकार होना पड़ता है. घायलों की चिंता करने से पहले सरकार को ऐसे वाहनों को जनता के आक्रोश से बचाने का प्रबंध करना चाहिए. अगर ट्रक चालक को इस बात की गारंटी होगी कि एक्सीडेंट के बाद लोग उनकी पिटाई नहीं करेंगे, उनके वाहन को आग नहीं लगाएंगे तो घायल को अस्पताल पहुंचाने में उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी. कोई भी नहीं चाहता कि उसकी वजह से खामख्वाह किसी की जान चली जाए. देश में 28 लाख से ज्यादा ट्रक प्रतिदिन 100 अरब किलोमीटर का सफर तय करते हैं. अधिकांश सड़कें आबादी से काफी दूर होती हैं. दूर-दूर तक कोई पुलिस स्टेशन नहीं होता. ऐसे में सरकार ट्रक चालकों की सुरक्षा की गारंटी करने की स्थिति में नजर नहीं आती. ट्रक चालकों को छोड़ भी दें तो सरकार अब तक अस्पतालों और ट्रॉमा सेन्टरों को सुरक्षा उपलब्ध कराने में असफल रही है. केवल हवा में कानून बनाने से देश अमेरिका नहीं बन सकता.