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छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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lemon grass : भाटापारा- क्या आप जानते हैं कि औषधीय पौधों में एक पौधा ऐसा भी है, जिसकी एक बोनी लगातार 3 साल तक फसल देती है। दिलचस्प बात यह कि इसके पौधे जानवर नहीं खाते। जी हां, इसका नाम लेमन ग्रास है। जिसकी व्यवसायिक खेती झारखंड में आकार ले चुकी है।
अनिश्चित बारिश के बाद किसान अब ऐसी फसलों की खेती की ओर कदम बढ़ा रहा है, जिसमें लागत और नुकसान की आशंका कम है। संशय से भरे कृषि क्षेत्र में एक ऐसे पौधे की पहचान हुई है जो इस अनिश्चितता को काफी हद तक दूर करने में सक्षम है। अच्छी बात यह है कि यह हर उस संशय को दूर करने में सहायक होगा, जिसमें लागत, बाजार और अनिश्चित मौसम जैसी हमेशा की परेशानी शामिल है।
अनुसंधान के बाद लेमन ग्रास की खेती के लिए मात्र 25 हजार रुपए व्यय का होना बताया गया है। यह रकम प्रति एकड़ होगी। 4 माह बाद जब फसल तैयार होगी, तब इसके परिपक्व पौधे का बाजार मूल्य लगभग 90 हजार रुपए के आसपास होगा। लाभ की मात्रा बढ़ानी हो तो बीच की अवधि में इसके पौधे 70 से 80 रुपए किलो की दर पर नर्सरियों को बेचे जा सकते हैं।
लेमन ग्रास के पौधे की उपलब्धता वैसे तो अपने प्रदेश की नर्सरियों में होने लगी है लेकिन लखनऊ स्थित सीएमएपी के कैंपस में इसके स्वस्थ पौधे खरीदे जा सकते हैं। जुलाई से लेकर सितंबर तक की अवधि में कभी भी इसके पौधों का रोपण किया जा सकता है। पौधों से पौधे की दूरी एक फीट और कतार से कतार के बीच का अंतर डेढ़ फीट सही माना गया है। इस मान में इसका फैलाव अच्छा होता है और फसल भी जोरदार हासिल होती है।
लेमन ग्रास ऐसी फसल है जिसे न्यूनतम पानी में भी तैयार किया जा सकता है। याने अनिश्चित मानसून में भी यह फसल तैयार की जा सकती है। दूसरी विशेषता यह है कि इसे पशु नहीं खाते, लिहाजा चराई से होने वाले नुकसान से बड़ी राहत। तीसरी बड़ी विशेषता यह कि लेमनग्रास की फसल बंजर जमीन पर भी की जा सकती है। अंतिम गुण यह कि फसल में कीट प्रकोप या बीमारियां नहीं होती याने हर वह चिंता दूर होगी, जो किसी भी फसल के लिए नुकसान की वजह बनती है।
लेमनग्रास एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइन्फ्लेमेटरी और एंटीसेप्टिक गुणों से भरपूर होती है, जो कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं में मददगार होती है। लेमनग्रास से निकलने वाले तेल की बाजार में बहुत मांग है। तेल का उपयोग कॉस्मेटिक, साबुन और दवा बनाने में किया जाता है।
अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर