हमारे बारे में
छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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Purchased paddy : गरियाबंद। धान खरीदी को लेकर तथ्य को अवगत कराने के लिए गरियाबंद स्थित पीडब्ल्यूडी रेस्ट हाऊस में भारतीय जनता पार्टी के पूर्व कृषि मंत्री चंदशेखर साहू ने पत्रकारवार्ता ली। उन्होंने प्रदेश की कांग्रेस सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि यह सरकार पूरी तरह से भ्रम की स्थिति निर्मित कर रही है, जिससे कि किसानों को नुकसान होगा। कहा कि पिछले खरीफ मौसम में प्रदेश सरकार को धान खरीदी के बाद 61 लाख मीट्रिक टन चावल भारतीय खाद्य निगम को जमा करना था। बाद में यह कोटा राज्य सरकार के अनुरोध पर घटाकर केवल 58 लाख मीट्रिक टन कर दिया गया और अब तक राज्य की ओर से 58 लाख मीट्रिक टन के स्थान पर केवल 53 लाख मीट्रिक टन ही जमा कराया गया है। इस दौरान भाजपा युवा नेता आशीष शर्मा, राजेंद्र सिंह राजपूत, गरियाबंद भाजपा जिला मीडिया प्रभारी राधेश्याम सोनवानी मौजूद थे।
Purchased paddy : पत्रकारवार्ता में उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ में 107 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी की गई, लेकिन केंद्रीय पूल में निर्धारित 58 लाख टन चावल जमा नहीं कर पा रही है। अब राज्य सरकार केंद्र सरकार से कहती है कि 86 लाख मीट्रिक टन चावल सेंट्रल पूल में चावल जमा कर सकते है, जबकि राज्य सरकार ने 3 अगस्त 2023 को पत्र लिख कर सूचना दी है कि अगले खरीफ मौसम में धान का उत्पादन 2022-23 के 138 लाख टन की तुलना में 136 लाख टन होगा। इसका मतलब है, छत्तीसगढ़ में पिछले साल की तुलना में 2 लाख टन धान का उत्पादन कम होगा। ऐसे में धान की खरीदी कैसे ज्यादा होगी, की 86 लाख टन चावल केंद्रीय पूल में जमा करा सकेंगे? इससे सरकार द्वारा धान की खरीदी में घोटाला करने की साजिश दिखाई दे रही है। कांग्रेस की मानसिकता को दिखाती है कि इस मामले में केवल सियासत करना चाहती है।
Purchased paddy : साहू ने कहा कि कृषि विभाग के आंकड़ों में प्रदेश में प्रति एकड़ धान का औसतन उत्पादन जब 13-14 क्विंटल है तो प्रदेश की सरकार किस आधार पर 20 क्विंटल धान खरीदने का दावा कर रही है। इससे स्पष्ट होता है कि अन्य राज्यों से अवैध तौर पर प्रदेश में धान कांग्रेस सरकार के कथित सहमति से बेचा जा रहा है यह एक तरह से धान की
तस्करी जैसा मामला है। आरोप है कि चावल तस्करी से पैसा खाने की योजना कांग्रेस बना चुकी है, इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार ने धान खरीदी प्रक्रिया में बायोमेट्रिक पध्दति का उपयोग कर रही है। जब केन्द्र सरकार द्वारा बायोमेट्रिक एंट्री की बातकही जा रही है तो कांग्रेस की पूरी सरकार इस बात को लेकर भयभीत है। अब धान खरीदी को लेकर अब कांग्रेस की ओर से बायोमेट्रिक पध्दति का विरोध किया जा रहा है और इस संबंध में राज्य के खाद्य सचिव के द्वारा केन्द्रीय खाद्य सचिव को भेजा गया है। यह बताता है कि प्रदेश सरकार की मंशा बेईमानी करने की है।
केन्द्र सरकार तो प्रदेश के किसानों का दाना-दाना धान चाहे वह 100 लाख मीट्रिक टन चावल हो खरीदने को तैयार है इस पर कांग्रेस की तरफ से न तो कोई जवाब आ रहा है और न ही धान खरीदी को लेकर कोई पुख्ता योजना है।
उन्होंने कहा कि 21 मार्च को विधानसभा के सदन में प्रदेश सरकार ने इस बात को स्वीकारा था कि 13 हजार से अधिक पीडीएस केन्द्रों की जांच की जा रही है जिसकी रिपोर्ट आज तक नहीं आयी है जिसके संदर्भ में जुलाई के सत्र में जब प्रदेश सरकार से जवाब मांगा गया तब न्यायालयीन प्रक्रिया का सहारा लेकर इस पर जवाब नहीं दिया गया। यह स्पष्ट करता है कि प्रदेश में व्यापक घोटाला हुआ है जिस पर पर्दा डालने का काम प्रदेश की कांग्रेस सरकार कर रही है, इस पर न्यायालय के तरफ से कोई भी दिशा निर्देश प्राप्त नहीं हुआ है।
वर्ष 2022-2023 में राज्य सरकार ने केन्द्रीय पूल में 61 लाख मीट्रिक टन चावल देने का प्रस्ताव रखा था जिस पर
केन्द्र सरकार सहमत थी। इसके बाद 13 सितंबर को राज्य सरकार ने केन्द्रीय पूल में 61 लाख मीट्रिक टन देने में असमर्थता जाहिर करते हुए 58.65 लाख मीट्रिक टन चावल देने की बात कही। मुख्यमंत्री जनता को भ्रमित कर रहे हैं। तब प्रश्न यह है कि इस वर्ष धान का उत्पादन कम होने के बात करने वाले मुख्यमंत्री भूपेश बघेल किस आधार
पर केन्द्रीय पूल 86.5 लाख टन चावल जमा करने की बात कर रहे है। उन्होंने प्रधानमंत्री को क्यों झूठा पत्र लिखा
केन्द्रीय पूल में 86.5 लाख मीट्रिक टन चावल जमा करने की बता कहीं है। भूपेश बघेल को चावल का कोटा बढ़ाने पत्र लिखने की इसलिए आवश्यकता नहीं थी क्योंकि केन्द्र व राज्य के बीच हुए एमओयू की नियम 18 में स्पष्ट है कि यदि राज्य के पास धान का अधिक संग्रहण हो गया है तो वह अतिरिक्त चावल में परिवर्तित कर केन्द्रीय पूल में ले लेगी। हम नियम के बाद पत्र लिखने का कोई औचित्य नहीं था।