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Red data book : चार और चिरौंजी के नाम से प्रसिद्ध ये वृक्ष तेजी से खो रहा अपना अस्तित्व


Red data book : भाटापारा – नाम है बुकानानिया लांजन। पहचान है, चार और चिरौंजी के नाम से। रेड डाटा बुक में अब इसे भी शामिल कर लिया गया है क्योंकि संरक्षण और संवर्धन के प्रयास नहीं होने से यह प्रजाति विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी है।

देश के 12 राज्यों में मिलने वाला चार का वृक्ष तेजी से अपना अस्तित्व खो रहा है। आदिवासी क्षेत्रों में जो वृक्ष बचे रह गए हैं, उनकी उम्र सीमा खत्म होने लगी है। ऐसे में इसे रेड डाटा बुक में दर्ज कर लिया गया है। वानिकी वैज्ञानिकों ने मान लिया है कि संरक्षण और संवर्धन की दिशा में शीघ्र पहल नहीं की गई, तो यह प्रजाति बहुत जल्द खत्म हो जाएगी।

Red data book : बेहद कठोर भूमि। बेहद कम पानी। चिकनी मिट्टी में भी तैयार होने वाला चिरौंजी का वृक्ष ऐसे क्षेत्र के लिए वरदान है, जहां दूसरी प्रजाति तैयार नहीं हो पाती। इसके अलावा यह एकमात्र ऐसा वनोपज है, जिसका बाजार मूल्य उच्चतम रहता है। वनांचल में रहने वाला आदिवासी समुदाय पूरे साल की आजीविका इसके दम पर चला सकता है।

अवैज्ञानिक बीज दोहन, कमजोर पुनर्जनन और अंधाधुंध कटाई ने इसे विलुप्ति की कगार पर पहुंचा दिया है। नए पौधों का रोपण और पुराने पेड़ों की देखरेख का नहीं किया जाना दूसरी बड़ी वजह मानी जा रही है। रही-सही कसर नई शाखाओं के काटे जाने की प्रवृत्ति पूरा कर रही हैं। वानिकी वैज्ञानिकों ने अपनी ओर से जरूरी उपाय तो सुझाए हैं लेकिन मानेगा कौन ?

नवंबर और दिसंबर में बोए जाते हैं इसके बीज, लेकिन मार्च में डाले गए बीज बेहतर परिणाम देते हैं। बेहद कठोर भूमि पर यह बेहतर बढ़वार लेता है। कम पानी की मांग करने वाला चिरौंजी का वृक्ष सूखा के प्रति सहनशील है। 15 मीटर तक की ऊंचाई हासिल करने वाली इस प्रजाति के वृक्ष में जनवरी से मार्च के बीच फूल लगते हैं। अप्रैल से जून के महीने में फल लगते हैं, जिन्हें पखवाड़े बाद परिपक्व होने पर तोड़ लिया जाता है। एक वृक्ष एक साल में लगभग 40 से 50 किलो फल देता है। सूखने के बाद इनका वजन 8 से 10 किलो रह जाता है। जिससे एक से डेढ़ किलो चिरौंजी निकलती है। कम है यह उत्पादन लेकिन उच्च कीमत हैरान करने वाली होती है।

पिछले कुछ दशकों से चिरौंजी की मांग शहरी बाजार में बढ़ने की वजह से जंगलों से इसका अंधाधुंध दोहन और पेड़ों की अवैज्ञानिक तरीके से छटाई की वजह से चिरौंजी के पेड़ तेजी से कम हुए हैं। आवश्यकता है प्राकृतिक वन में जो भी वृक्ष बचे हैं उन्हें प्राथमिकता के आधार पर संरक्षित करें एवं नए वृक्षों का कृषिवानिकी पद्धति से रोपण करके प्रजाति को विनाश की ओर जाने से रोके।

अजीत विलियम्स, साइंटिस्ट (फॉरेस्ट्री), बीटीसी कॉलेज ऑफ़ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, बिलासपुर