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भाग्य का सम्मान करने वाला बनता है भगवान- आचार्य विशुद्ध सागर


-नसिया तिर्थ में पंचकल्याणक महोत्सव का भव्य आयोजन

दुर्ग। नसिया तिर्थ में पंचकल्याणक महोत्सव का आयोजन किया जा रहा है। महोत्सव के दूसरे दिन आचार्य  विषुद्ध सागर महाराज ने कहा कि जो जीव भाग्य का सम्मान करता है भाग्य उसको भगवान बना देता है। भाग्य का कभी अपमान नहीं करना चाहिए। जो तुम भाग्य का अपमान करके आए हो तो तुम्हारा अपमान हो रहा है। कुछ पाना है तो कुछ खोना पड़ता है इसलिए भाग्य का सम्मान करो। नसिया तीर्थ में आयोजित पंचकल्याणक महामहोत्सव में प्रवचन के दौरान आचार्य विषुद्ध सागर जी ने कहा कि भाग्य की नीति कुटिल होती है और यह समय पर काम करती है। उन्होंने बताया कि राम का राजतिलक होने जा रहा था। राज्याभिषेक की सारी तैयारी कर ली गई थी लेकिन उन्हें वनवास जाना पड़ा। उन्होंने वनवास के भाग्य का सम्मान किया और जगत में प्रसिद्ध हुए। आचार्य विषुद्ध सागर ने आगे कहा कि न ही संसार क्लेष देता है और न ही वस्तु क्लेष देती है। व्यक्ति की इच्छाएँ क्लेष देती है। हर मनुष्य चाहता है कि उसके अनुकूल कार्य हो। यह विचार मस्तिष्क में आना स्वाभाविक है। मनुष्य सोचता है कि मैं चक्रवर्ती बन जाऊं लेकिन वह सोच लेने से ही चक्रवर्ती नहीं बन जाता। योग,पुण्य व कर्म करके आया व्यक्ति ही चक्रवर्ती बनता है। जितना ऊंचा सोचोगे पुण्य उतना ही ऊंचा होना चाहिए। श्रेष्ठ पुरूषार्थ हमारा धर्म है। आचार्य जी ने कहा कि जहां देव है वहां पुरूषार्थ होना चाहिए और जहां पुरूषार्थ है वहां भाग्य होना चाहिए। जिन्हें देव, भाग्य और पुरूषार्थ का ज्ञान नहीं है वह कभी आगे नहीं बढ़ सकते। उन्होंने कहा कि पुरूषार्थ करके भाग्य बनाया जाता है जब कर्म सफल होता है तब पुरूषार्थ के साथ भाग्य का क्षय होता है। उन्होंने बताया कि दीपक जलता है तब प्रकाष होता है लेकिन इसमें घी का क्षय होता है। उसी तरह पुरूषार्थ के द्वारा कर्म सफल होने पर भाग्य का क्षय होता है। संसार में क्षय के बिना मोक्ष नहीं मिलता। पहले पुण्य कमाओ तब भोग मिलेगा। उन्होंने कहा कि पुण्यात्मा बनने के लिए मै मुनि नहीं बना। पुण्यात्मा था इसलिए मुनि बना हूँ। ऋषियों के दर्षन से बहुत पुण्य मिलता है। और जिसके पास श्रद्धा होती है। उसे ही आषीर्वाद मिलता है। इससे पहले पंच कल्याणक प्रतिष्ठा महामहोत्सव के पहले दिन शनिवार को 7 बजे गर्भकल्याण के पूर्व रूप का मंगलाष्टक दिग्बंधक रक्षा मंत्र शांति मंत्र नित्यमह अभिषेक शेष योग मंगल विधान व शांति धारा पूजन आचार्य विषुद्ध सागर महाराज ने किया। सायंकाल 7 बजे आरती हुई। उसके बाद रात्रि 8 बजे सौधर्म इन्द्रसभा तत्वचर्चा धनपति कुबेर द्वारा रत्नों की वृष्टि स्वर्ग से सुन्दर अयोध्या नगरी की रचना माता की सेवा सोलह स्वप्न दर्षन गीत नृत्य अष्ट कुमारिया द्वारा माता की सेवा व भेंट समर्पण का कार्यक्रम हुआ। आज की शांतिधारा के पुन्पार्य तक बसंत कुमार संदीप कुमार पटौती पाद प्रक्षाय सुमेर पण्डया शास्त्र भेंट का कार्य बाबूलाल संतोष कुमार ने किया। अतिथि के रूप में दुर्ग लोकसभा के सांसद विजय बघेल व महापौर धीरज बाकलीवाल शामिल हुए।

इस अवसर पर राकेश छाबड़ा पंकज छाबड़ा,सजल काला, संदीप लुहाड़िया, ज्ञानचंद पाटनी, सुरेन्द्र पाटनी, जितेन्द्र पाटनी, अनिल गोधा, मनीष बड़जात्या, सुनील गंगवाल, डाॅ.आंशु सुराना, डाॅ.रोहित सारस्वत, पवन जैन,अनुप गटागट, विपिन जैन, मनोज बाकलीवाल,अनिता बाकलीवाल,अक्षय जैन, प्रवीण बड़जात्या, संजय बोहरा, विजय बोहरा, महेन्द्र पाटनी, रतन पाटनी, राजेन्द्र पाटनी सहित भारी संख्या में धर्मप्रेमी मौजूद थे  ।