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छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।
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नई दिल्ली: समलैंगिकों के विवाह के अधिकार का मामला गरम है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मंगलवार को बच्चों के जन्म की भी चर्चा हुई। मध्य प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने अपने तर्क से महिला-पुरुष की शादी के व्यापक पहलू को समझाने की कोशिश की। उन्होंने कहा कि महिला-पुरुष कपल को रीति-रिवाज, कानून और धर्म के अनुसार शादी का अधिकार है। उन्होंने कोर्ट से फिर आग्रह किया कि इस मुद्दे को संसद पर छोड़ दिया जाए।
समलैंगिक विवाह के खिलाफ अपनी दलीलें रखते हुए द्विवेदी ने कहा कि बच्चे पैदा न करने से कई देशों में बुजुर्ग आबादी बढ़ रही है। उन्होंने यहां तक कह दिया कि संतान उत्पत्ति के उद्देश्य के बगैर की जाने वाली शादी से राष्ट्र खत्म हो जाएगा। वकील का तर्क बदलाव के खिलाफ था। इस पर जस्टिस भट ने कहा कि पहले अंतर-जातीय विवाह की अनुमति नहीं थी और अंतर-धार्मिक विवाह 50 साल पहले अनसुना था। उन्होंने कहा, ‘संविधान अपने आप में परंपरा को तोड़ने वाला है क्योंकि पहली बार आप अनुच्छेद 14 लाए हैं। अगर आप अनुच्छेद 14, 15 और 17 लाए हैं तो वे परंपराएं टूट गई हैं।’ इस पर द्विवेदी ने तर्क रखा कि बदलाव विधायिका ने किए जो रीति-रिवाज बदल सकती है।
एमपी सरकार के वकील राकेश द्विवेदी ने कहा कि विवाह एक सामाजिक संस्था है। ऐसा नहीं है कि रातोंरात कुछ हो रहा है और दो लोग आकर कह रहे हैं कि यह एक विवाह है। विवाहरूपी संस्था समाज से उभरी है। बहुत सारे विकास हुए हैं। मुद्दा यह है कि सभी सुधार विधायिका ने महिलाओं और बच्चों के हित में किए। वे मौलिक पहलू (विवाह की सामाजिक संस्था के मौजूदा मूल पहलू) को नहीं बदलते हैं।
चीफ जस्टिस ने विवाह और परिवार पर अहम टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि विवाह एक परिवार की धारणा, एक परिवार इकाई का अस्तित्व है क्योंकि दो लोग जो विवाह में साथ आते हैं, एक परिवार बनाते हैं। सीजेआई ने कहा कि विवाह का बहुत महत्वपूर्ण घटक संतान की उत्पत्ति है।