हमारे बारे में

छत्तीसगढ़ प्रदेश का एक विश्वसनीय न्यूज पोर्टल है, जिसकी स्थापना देश एवं प्रदेश के प्रमुख विषयों और खबरों को सही तथ्यों के साथ आमजनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से की गई है।

Special on raksha bandhan – रक्षा बंधन पर विशेष : मैं आ गया मेरी बहन


Special on raksha bandhan ब्रजमंडल क्षेत्र में एक जंगल के पास एक गाँव बसा था। जंगल के किनारे ही एक टूटी-फूटी झोपड़ी में एक सात वर्षीया बालिका अपनी बूढ़ी दादी के साथ रहा करती थी। जिसका नाम उसकी दादी ने बड़े प्रेम से चंदा रखा था।

चंदा का उसकी दादी के अतिरिक्त और कोई सहारा नहीं था, उसके माता पिता की मृत्यु एक महामारी में उस समय हो गई थी जब चंदा की आयु मात्र दो वर्ष ही थी, तब से उसकी दादी ने ही उसका पालन-पोषण किया था।

उस बूढ़ी स्त्री के पास भी कमाई का कोई साधन नहीं था इसलिए वह जंगल जाती और लकड़िया बीन कर उनको बेचती और उससे जो भी आय होती उससे ही उनका गुजारा चलता था।

क्योंकि घर में और कोई नहीं था इसलिए दादी चंदा को भी अपने साथ जंगल ले जाती थी। दोनों दादी-पोती दिन भर जंगल में भटकते और संध्या होने से पहले घर वापस लौट आते … यही उनका प्रति दिन का नियम था।

Special on raksha bandhan चंदा अपनी दादी के साथ बहुत प्रसन्न रहती थी, किन्तु उसको एक बात बहुत कचोटती थी कि उसका कोई भाई या बहन नहीं थे। गांव के बच्चे उसको इस बात के लिए बहुत चिढ़ाते थे तथा उसको अपने साथ भी नहीं खेलने देते थे, इससे वह बहुत दुःखी रहती थी।

अनेक बार वह अपनी दादी से पूछती की उसका कोई भाई क्यों नहीं है। तब उसकी दादी उसको प्रेम से समझाती.. कौन कहता है कि तेरा कोई भाई नहीं है, वह है ना कृष्ण कन्हैया वही तेरा भाई है, यह कह कर दादी लड्डू गोपाल की और संकेत कर देती।

Special on raksha bandhan चंदा की झोपडी में एक पुरानी किन्तु बहुत सुन्दर लड्डू गोपाल की प्रतीमा थी जो उसके दादा जी लाये थे। चंदा की दादी उनकी बड़े मन से सेवा किया करती थी। बहुत प्रेम से उनकी पूजा करती और उनको भोग लगाती।

निर्धन स्त्री पकवान मिष्ठान कहाँ से लाये जो उनके खाने के लिए रुखा सूखा होता वही पहले भगवान को भोग लगाती फिर चंदा के साथ बैठ कर खुद खाती। चंदा के प्रश्न सुनकर वह उस लड्डू गोपाल की और ही संकेत कर देती।

बालमन चंदा लड्डू गोपाल को ही अपना भाई मानने लगी। वह जब दुःखी होती तो लड्डू गोपाल के सम्मुख बैठ कर उनसे बात करने लगती और कहती की भाई तुम मेरे साथ खेलने क्यों नहीं आते, सब बच्चे मुझ को चिढ़ाते है…

Special on raksha bandhan मेरा उपहास करते है, मुझको अपने साथ भी नहीं खिलाते, में अकेली रहती हूँ, तुम क्यों नहीं आते। क्या तुम मुझ से रूठ गए हो, जो एक बार भी घर नहीं आते, मैने तो तुम को कभी देखा भी नहीं।

अपनी बाल कल्पनाओं में खोई चंदा लड्डू गोपाल से अपने मन का सारा दुःख कह देती। चंदा का प्रेम निश्च्छल था, वह अपने भाई को पुकारती थी। उसके प्रेम के आगे भगवान भी नतमस्तक हो जाते थे, किन्तु उन्होंने कभी कोई उत्तर नहीं दिया।

एक दिन चंदा ने अपनी दादी से पूछा.. दादी मेरे भाई घर क्यों नहीं आते, वह कहाँ रहते हैं। तब दादी ने उसको टालने के उद्देश्य से कहा तेरा भाई जंगल में रहता है, एक दिन वह अवश्य आएगा।

चंदा ने पूछा क्या उसको जंगल में डर नहीं लगता, वह जंगल में क्यों रहता है। तब दादी ने उत्तर दिया नहीं वह किसी से नहीं डरता, उसको गांव में अच्छा नहीं लगता इसलिए वह जंगल में रहता है।

धीर-धीरे रक्षा बंधन का दिन निकट आने लगा, गाँव में सभी लड़कियों ने अपने भाइयों के लिए राखियां खरीदी, वह चंदा को चिढ़ाने लगी कि तेरा तो कोई भाई नहीं तू किसको राखी बंधेगी।

अब चंदा का सब्र टूट गया वह घर आकर जोर जोर से रोने लगी, दादी के पूंछने पर उसने सारी बात बताई, तब उसकी दादी भी बहुत दुःखी हुई उसने चंदा को प्यार से समझाया कि मेरी बच्ची तू रो मत, तेरा भाई अवश्य आएगा,

किन्तु चंदा का रोना नहीं रुका वह लड्डू गोपाल की प्रतिमा के पास जाकर उससे लिपट कर जोर-जोर से रोने लगी और बोली की भाई तुम आते क्यों नहीं, सब भाई अपनी बहन से राखी बंधवाते हैं, फिर तुम क्यों नहीं आते।

उधर गोविन्द चंदा की समस्त चेष्टाओं के साक्षी बन रहे थे। रोते-रोते चंदा को याद आया कि दादी ने कहा था कि उसका भाई जंगल में रहता है, बस फिर क्या था वह दादी को बिना बताए नंगे पाँव ही जंगल की और दौड़ पड़ी, उसने मन में ठान लिया था कि वह आज अपने भाई को लेकर ही आएगी।

जंगल की काँटों भरी राह पर वह मासूम दौड़ी जा रही थी, श्री गोविन्द उसके साक्षी बन रहे थे। तभी श्री हरी गोविन्द पीढ़ा से कराह उठे उनके पांव से रक्त बह निकला, आखिर हो भी क्यों ना श्री हरी का कोई भक्त पीढ़ा में हो और भगवान को पीड़ा ना हो यह कैसे संभव है, जंगल में नन्ही चंदा के पाँव में काँटा लगा तो भगवान भी पीढ़ा कराह उठे।

उधर चंदा के पैर में भी रक्त बह निकला वह वही बैठ कर रोने लगी, तभी भगवान ने अपने पाँव में उस स्थान पर हाथ फैरा जहा कांटा लगा था, पलक झपकते है चंदा में पाँव से रक्त बहना बंद हो गया और दर्द भी ना रहा वह फिर से उठी और जंगल की और दौड़ चली।

इस बार उसका पाँव काँटों से छलनी हो गया किन्तु वह नन्ही सी जान बिना चिंता किये दौड़ती रही उसको अपने भाई के पास जाना था अंततः एक स्थान पर थक कर रुक गई और रो-रो कर पुकारने लगी भाई तुम कहाँ हों, तुम आते क्यों नहीं।

अब श्री गोविन्द के लिए एक पल भी रुकना कठिन था, वह तुरंत उठे और एक ग्यारहा- बारहा वर्ष के सुन्दर से बालक का रूप धारण किया तथा पहुँच गए चंदा के पास।

उधर चंदा थक कर बैठ गई थी और सर झुका कर रोये जा रही थी तभी उसके सर पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ। और एक आवाज सुनाई दी, “में आ गया मेरी बहन, अब तू ना रो”

चंदा ने सर उठा कर उस बालक को देखा और पूंछा क्या तुम मेरे भाई हो ? तब उत्तर मिला “हाँ चंदा, में ही तुम्हारा भाई हूँ” यह सुनते ही चंदा अपने भाई से लिपट गई और फूट फूट कर रोने लगी।

तभी भक्त और भगवान के मध्य भाव और भक्ति का एक अनूठा दृश्य उत्त्पन्न हुआ , भगवान वही धरती पर बैठ गए उन्होंने नन्ही चंदा के कोमल पैरो को अपने हाथो में लिया और उसको प्रेम से देखा।

वह छोटे-छोटे कोमल पांव पूर्ण रूप से काँटों से छलनी हो चुके थे उनमे से रक्त बह रहा था, यह देख कर भगवान की आँखों से आंसू बह निकले उन्होंने उन नन्हे पैरो को अपने माथे से लगाया और रो उठे,

अद्भुद दृश्य, बहन भाई को पाने की प्रसन्नता में रो रही थी और भगवान अपने भक्त के कष्ट को देख कर रो रहे थे। श्री हरी ने अपने हाथो से चंदा के पैरो में चुभे एक एक कांटे को बड़े प्रेम से निकाला फिर उसके पैरो पर अपने हाथ का स्पर्श किया, पलभर में सभी कष्ट दूर हो गया।

चंदा अपने भाई का हाथ पकड़ कर बोली भाई तुम घर चलो, कल रक्षा बंधन है, में भी रक्षा बंधन करुँगी। भगवान बोले अब तू घर जा दादी प्रतीक्षा कर रही होगी, में कल प्रातः घर अवश्य आऊंगा। ऐसा कहकर उसको विश्वाश दिलाया और जंगल के बाहर तक छोड़ने आए।

अब चंदा बहुत प्रसन्न थी उसकी सारी चिंता मिट गई थी, घर पहुंची तो देखा कि दादी का रो रो कर बुरा हाल था चंदा को देखते ही उसको छाती से लगा लिया। चंदा बहुत पुलकित थी बोली दादी अब तू रो मत कल मेरा भाई आएगा, में भी रक्षा बंधन करुँगी।

दादी ने अपने आंसू पोंछे उसने सोंचा कि जंगल में कोई बालक मिल गया होगा जिसको यह अपना भाई समझ रही है, चंदा ने दादी से जिद्द करी और एक सुन्दर सी राखी अपने भाई के लिए खरीदी।

अगले दिन प्रातः ही वह नहा-धो कर अपने भाई की प्रतीक्षा में द्वार पर बैठ गई, उसको अधिक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ी थोड़ी देर में ही वह बालक सामने से आते दिखाई दिया, उसको देखते ही चंदा प्रसन्नता से चीख उठी ” दादी भाई आ गया” और वह दौड़ कर अपने भाई के पास पहुँच गई, उसका हाथ पकड़ कर घर में ले आई।

अपनी टूटी-फूटी चारपाई पर बैठाया बड़े प्रेम से भाई का तिलक किया आरती उतारी और रक्षा बंधन किया। सुन्दर राखी देख कर भाई बहुत प्रसन्न था, भाई के रूप में भगवान उसके प्रेम को देख कर विभोर हो उठे थे, अब बारी उनकी थी।

भाई ने अपने साथ लाए झोले को खोला तो खुशिओं का अम्बार था, सुन्दर, कपडे, मिठाई, खिलोने, और भी बहुत कुछ। चंदा को मानो पंख लग गए थे। उसकी प्रसन्नता का ठिकाना नहीं था।

कुछ समय साथ रहने के बाद वह बालक बोला अब मुझको जंगल में वापस जाना है। चंदा उदास हो गई, तब वह बोला तू उदास ना हो, आज से प्रतिदिन में तुमसे मिलने अवश्य आऊंगा। अब वह प्रसन्न थी। बालक जंगल लौट गया।

उधर दादी असमंजस में थी कौन है यह बालक, उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। किन्तु हरी के मन की हरी ही जाने।

भाई के जाने के बाद जब चंदा घर में वापस लौटी तो एकदम ठिठक गई उसकी दृष्टि लड्डू गोपाल की प्रतीमा पर पड़ी तो उसने देखा कि उनके हाथ में वही राखी बंधी थी जो उसने अपने भाई के हाथ में बांधी थी।

उसने दादी को तुरंत बुलाया यह देख कर दादी भी अचम्भित रह गई, किन्तु उसने बचपन से कृष्ण की भक्ति करी थी वह तुरंत जान गई कि वह बालक और कोई नहीं स्वयं श्री हरी ही थे, वह उनके चरणो में गिर पड़ी और बोली, है छलिया, जीवन भर तो छला जीवन का अंत आया तो अब भी छल कर चले गए।

वह चंदा से बोली अरी वह बालक और कोई नहीं तेरा यही भाई था। यह सुन कर चंदा भगवान की प्रतीमा से लिपट कर रोने लगी रो रो कर बोली कहो ना भाई क्या वह तुम ही थे, में जानती हूँ वह तुम ही थे, फिर सामने क्यों नहीं आते, छुपते क्यों हो।

दादी पोती का निर्मल प्रेम ऐसा था कि भगवान भी विवश हो गए। लीला धारी तुरंत ही विग्रह से प्रकट हो गए और बोले हां चंदा में ही तुम्हारा वह भाई हूँ, तुमने मुझको पुकारा तो मुझको आना पड़ा। और में कैसे नहीं आता, जो भी लोग ढोंग, दिखावा, पाखंड रचते है उनसे में बहुत दूर रहता हूँ, किन्तु जब मेरा कोई सच्चा भक्त प्रेम भक्ति से मुझको पुकारता है तो मुझको आना ही पड़ता है।

भक्त और भगवान की प्रेममय लीला चल रही थी, और दादी वह तो भगवान में लीन हो चुकी थी रह गई, चंदा तो उस दिन के बाद से गाँव में उनको किसी ने नहीं देखा, कोई नहीं जान पाया की आखिर दादी-पोती कहा चले गए। प्रभु की लीला प्रभु ही जाने.